LIC जीवन बीमा के भुगतान में सबसे आगे

जीवन बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, बीमाधारक की मौत के बाद दावा ठुकराने में निजी क्षेत्र की कंपनी श्रीराम लाइफ सबसे आगे है। वहीं, सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी ने इस दौरान सबसे कम दावे ठुकराए।


रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी बीमा कंपनी ने वर्ष 2017-18 में बीमाधारकों की मौत के बाद सबसे कम दावों को ठुकराया जो एक फीसदी से भी नीचे रहा। एलआईसी ने इस दौरान 4,958 दावों के भुगतान से इंकार किया है जो कि उसके कुल दावों का महज 0.67 फीसदी है। यदि इन दावों से जुड़ी रकम को देखा जाए तो यह 194.73 करोड़ रुपये बैठती है, जो कंपनी के कुल दावा भुगतान का महज 1.71 फीसदी है।

वर्ष 2017-18 के दौरान एलआईसी ने बीमाधारकों की मौत के बाद 7,24,596 दावों का निपटारा किया जो कि कुल दावों का 98.04 फीसदी है। इस दौरान कंपनी ने बीमाधारकों के परिवारजनों को 10,747.53 करोड़ रुपये की रकम का भुगतान किया।

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दावा भुगतान में बीमा क्षेत्र की कई निजी कंपनियों का प्रदर्शन भी बेहतर रहा है। मैक्स लाइफ ने वर्ष 2017-18 के दौरान 10,152 दावों का निपटारा किया जो उसके कुल दावे का 98.26 फीसदी है। इस दौरान कंपनी ने 353.39 करोड़ रुपये बीमाधारकों के परिवारजनों को सौंपा। टाटा एआईए ने भी समान अवधि में 2,793 दावों का निपटारा किया, जो उसके कुल दावे का 98 फीसदी है। इसके अलावा आईसीआई प्रुडेंशियल ने 97.88 फीसदी दावों में बीमाधारक के परिजनों को भुगतान किया जबकि एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ ने भी पिछले साल 97.80 फीसदी दावों का निपटारा किया।

आईआरडीए के मुताबिक, बीमाधारक की मृत्यु के बाद निजी कंपनियों ने सबसे ज्यादा दावा भुगतान ठुकराया। इसमें श्रीराम लाइफ सबसे आगे रही। वर्ष 2017-18 में इस कंपनी 560 दावों को ठुकराया जो कि उसके कुल दावों का 17.80 फीसदी है। कंपनी द्वारा इन दावों को ठुकराने से 26.89 करोड़ रुपये की बचत हुई जो कि उसके कुल दावे का 26.43 फीसदी रहा। दावा ठुकराने में दूसरा स्थान इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस का है। इस कंपनी ने वर्ष 2017-18 के दौरान 181 भुगतान दावों को ठुकराया जो उसके कुल दावों का 10 फीसदी है। इसी तरह सहारा लाइफ बीमा भुगतान का दावा ठुकराने में तीसरे स्थान पर रही। इस कंपनी ने आलोच्य अवधि में 8.48 फीसदी दावों को ठुकराया। पीएनबी मेटलाइफ भी 8.05 फीसदी दावे ठुकराकर इस सूची में चौथे स्थान पर रही, जबकि पांचवें स्थान पर रहने वाली आईडीबीआई फेडरल ने बीते वर्ष 7.49 फीसदी दावों को ठुकरा दिया। भारत में इस तरह के दावों को ठुकराने का औसत 1.10 फीसदी है।

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