यहां न्यायालय नहीं शौचालय में निपटाए जा रहे मुक़दमे
विनय तिवारी
चंदौली। कहा जाता है कि न्यायालय न्याय का मंदिर होता है और उस में बैठने वाला न्याय का देवता कहलाता है। इस परिदृश्य में न्यायालय का महत्वपूर्ण कार्य यदि शौचालय में संचालित होता हो तो मंदिर और देवता को क्या मिसाल दिया जाए ये बात हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देगी. ऐसे में न्यायालय की गरिमा भी खतरे में दिखाई देती है।
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आपको बता दें कि, चंदौली जिले को बने लगभग 20 वर्ष हुए उसके बाद भी आज जनपद चंदौली में मध्यस्थता केंद्र को बार के लिए बने शौचालय में किया जा रहा है। जिस पर न तो जिला प्रशासन अपनी जिम्मेदारी समझता है और ना ही जिला न्यायालय। इतना ही नहीं जिले के जनप्रतिनिधियों की भी नजर इस पर नहीं पहुंचत रही है।
शौचालय में बने न्यायालय में कार्य कर रहे अधिवक्तागण भी इस गरिमा को धूमिल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। महिला अधिवक्ता ने बताया कि हमें जहां जगह मिलेगी वहां बैठकर मीडिएशन जैसे पुनीत कार्य को हम कर सकते हैं, चाहे वह शौचालय ही क्यों न हो।
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उन्होंने आरोप लगाया कि जिले में चौकी के ऊपर कुर्सी रखकर भी न्यायालय संचालित हो रहा है तो शौचालय में क्या बुराई है।
इस परिदृश्य को देखने के बाद न्याय की कल्पना करने वाले फरियादी भी कैसा महसूस करेंगे इसकी कल्पना करना भी दुरूह कार्य है। जब न्यायालय का महत्वपूर्ण कार्य शौचालय में ही संचालित होगा तो उसका न्याय और अन्याय करने वाला देवता किस प्रकार का न्याय करेगा।
वहीं इस संबंध में अधिवक्ताओं का कहना है कि इस तरह का कार्य केवल लूट खसोट की कहानी को उजागर करता है जिसके कारण आज शौचालय में न्यायिक कार्य संचालित हो रहा है। इसके लिए अलग से जगह की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है और अधिवक्तागण मध्यस्थता केंद्र को शौचालय में चलाने के लिए मजबूर हैं।