बगैर घी खाए ही अखाड़े में सबको चित्त करता था यह पहलवान, आज बना गोल्ड मेडलिस्ट

नई दिल्ली। कहते हैं न कड़ी मेहनत और बेजोड़ जज्बे के आगे सारी मुसीबत और असफलताएं नतमस्तक हो जाती हैं। इस वाक्य को भारतीय पहलवान ने पूरी तरीके से सही साबित कर दिखाया है। इस पहलवान के जज्बे के आगे सारी अड़चने ढेर हो गईं। हम बात कर रहे हैं पहलवान बजरंग पूनिया के बारे में। जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को 17वां गोल्ड मेडल दिलाया है।बजरंग पूनिया

दरअसल, पहलवान बजरंग पूनिया ने पुरुषों के 65 किलोग्राम भार वर्ग में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए यह स्वर्णिम जीत दर्ज की है। बजरंग का यह दूसरा कॉमनवेल्थ पदक है, इससे पहले उन्होंने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में सिल्वर मेडल जीता था।

ऐसे जीता गोल्ड मेडल

बजरंग ने पुरुषों की 65 किलोग्राम वर्ग स्पर्धा के फाइनल में वेल्स के केन चैरिग को एकतरफा मुकाबले में 10-0 से शिकस्त दी। दिलचस्प बात यह है कि बजरंग ने यह जीत रियो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता को शिकस्त देकर हासिल की है।

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पूनिया चैरिग को हाथों से जकड़कर पटका और दो अंक लिए। इसी अवस्था में उन्होंने वेल्स के पहलवान को रोल कर दो अंक और लेते हुए 4-0 की बढ़त बना ली। इसी शैली और तरीके से बजरंग ने चार अंक और लिए। अंत में बजरंग ने चैरिग को चित करते हुए 10 अंक के साथ सोना जीता।

छत्रसाल स्टेडियम में सीखे कुश्ती के दांव-पेंच

हरियाणा के बजरंग ने 2014 में कॉमनवेल्थ खेलों में 61 किलोग्राम वर्ग में रजत जीता था और इस बार वह इन खेलों में अपने पदक के रंग को बदलने में कामयाब रहे। 24 साल के बजरंग पूनिया ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती के गुर सीखे और अब वो देश का परचम लहरा रहे हैं।

घी खाने को नहीं थे पैसे

वैसे तो बजरंग को कुश्ती विरासत में मिली। क्योंकि उनके पिता बलवान पूनिया अपने समय के नामी पहलवान रहे। लेकिन गरीबी ने उनके करियर को आगे नहीं बढ़ने दिया। कुछ ऐसा ही बजरंग के साथ हुआ।

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बजरंग के पिता के पास भी अपने बेटे को घी खिलाने के पैसे नहीं होते थे। इसके लिए वो बस का किराया बचाकर साइकिल से चलने लगे। जो पैसे बचते, उसे वो अपने बेटे के खाने पर खर्च करते थे। ऐसे हालातों से गुजरते हुए बजरंग ने पहलवानी की दुनिया में देश का नाम रोशन किया। असल मायनों में बजरंग पूनिया ने देश के सामने एक मिसाल कायम की है।

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