इस वार से सूख गया मायावती का हलक, चुन-चुन कर हिसाब लेगा ‘सरकारी तोता’!

लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती की दिक्कतें खत्म होने का नाम नही ले रही हैं. प्रदेश राजनीति में दबदबा बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी की राजनीतिक नैय्या हाशिये पर है और एक के बाद एक नाकामयाबी का दौर जारी है. मायावती के कार्यकाल में बेचीं गयी 21 चीनी मीलों की जांच का मामला सीबीआई को सौंप दिया गया है जिससे बसपा सुप्रीमो के लिए लोकसभा 2019 का चुनाव अभी से दूर की खेती नजर आने लगा है. उनके खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है. बताया जा रहा है इन चीनी मिलों को बेचे जाने से प्रदेश सरकार को 1,179 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था.मायावती

मायावती सरकार पर आरोप है कि उन्होंने 21 चीनी मिलों को बेचा जिनमें से 10 मिलें संचालित हो रही थीं. इन्हें बाजार की कीमतों से बहुत कम कीमत पर बेचा गया. ये चीनी मिलें 500 हेक्टेयर पर बनी थीं और तब इनकी कीमत 2,000 करोड़ रुपये थी.

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हालांकि पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर काफी गरम रहा है. बीते दिनों चीनी मिल प्रकरण पर सफाई देते हुए पार्टी प्रमुख मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर धांधली का आरोप लगाया था और कहा था कि चीनी मिल की बिक्री कागजात पर नसीमुद्दीन के हस्ताक्षर हैं जबकि पलटवार करते हुए नसीमुद्दीन ने मायावती के खास और बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र पर आरोपों की बौछार की थी.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस घोटाले की जांच कराने के लिए सीबीआई को 12 अप्रैल 2018 को पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि प्रदेश की जो भी 21 चीनी मिलें बीचे गईं, वह सब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनाई गईं बोगस कंपनियों ने खरीदीं. जो चीनी मिलें खरीदी गईं उनमें से देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, चित्तौनी और बाराबंकी की बंद पड़ी सात चीनी मिलें भी शामिल थीं.

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योगी सरकार ने इस मामले में जो नोटिफिकेशन जारी किया उसमें लिखा है कि संभव है कि दोषी प्रदेश के बाहर का भी हो सकता है इसलिए सीबीआई इसकी जांच करें. प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने बताया कि नीलाम की गईं 21 चीनी मिलों में विसंगतियां पाई गई थीं इसलिए अब सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई है.

जल्द ही इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. सीबीआई इस घोटाले में राजनेताओं, अधिकारियों और व्यापारियों की भूमिका की जांच करेगी. सरकार ने सीबीआई को उस एफआईआर की कॉपी भी सौंपी है जो नवंबर 2017 में गोमती नगर थाने में कराई गई थी. इस एफआईआर में दो कंपनियां नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरासो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का नाम था जिन्होंने चीनी मिलें खरीदी थीं. सूत्रों की मानें तो सरकार को जांच में ये दोनों कंपनियां बोगस मिली थीं. सीएजी जांच में भी चीनी मिलों की बिक्री को लेकर बड़ा घोटला सामने आया था.

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सपा सरकार ने मायावती शासनकाल में हुए इस घोटाले को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जबकि इस मामले में तत्कालीन सीएजी ने अखिलेश सरकार को वित्तीय अनियमितताओं की रिपोर्ट भी सौंपी थी. हालांकि नवंबर 2012 में लोकायुक्त को यह जांच सौंपी गई थी लेकिन तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जांच के बाद इसमें कोई घोटाला नहीं पाया था.

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