Bihar Assembly Election 2020 : आसान नहीं रही है IPS अफसरों के लिए बिहार की राजनीति

बिहार के राजनीतिक इतिहास में अभी तक कई पुलिस अधिकारियों ने अपना दांव अजमाया है। बावजूद इसके अगर ललित विजय सिंह को छोड़ दिया जाए तो आईपीएस अफसरों के लिए बिहार चुनाव वरदान नहीं साबित हो सके हैं।

आशीष रंज सिन्हा
बिहार की कमान नीतीश कुमार द्वारा संभाले जाने के दौरान आशीष रंजन सिन्हा डीजीपी थे। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने राजद का दामन थाम लिया। इसके बाद 2014 में वह कांग्रेस में शामिल हो गये और उन्होंने नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ा। आशीष रंजन सिन्हा को उश दौरान 1 लाख 27 हजार 270 वोट मिले। इसी के साथ उन्हें तीसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा।

डीपी ओझा
2003 तक बिहार के डीजीपी रहे डीपी ओझा ने भी 2004 में बिहार की राजनीति में अपना दांव अजमाया। डीपी ओझा ने बतौर डीजीपी सीवान के आतंक शहाबुद्दीन की कमर को तोड़ने का काम किया था। जिसके बाद उन्हें उम्मीद थी की वह चुनाव में अपना बेहतर परिणाम हासिल कर पाएंगे।लेकिन चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गयी।

जब्त हुई जमानत तो किसी को मिले नोटा से कम वोट
साल 2004 के चुनाव में ही भाजपा के टिकट पर आईजी रह चुके बलवीर चंद ने भी अपनी ताल ठोकीं। लेकिन इस चर्चित आईपीएस को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। चर्चाएं तो उस दौरान हुई जब 2019 में पटना साहिब से निर्दलीय चुनाव लड़े पूर्व डीजीपी अशोक कुमार गुप्ता को नोटा से भी कम वोट मिले। चुनाव परिणाम सामने आने पर पता चला कि 5 हजार 76 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया। जबकि पूर्व डीजीपी अशोक कुमार गुप्ता को महज 3447 वोट ही हासिल हो सके।

आईपीएस ललित विजय सिंह ने हासिल की जीत
बिहार की राजनीति में अभी तक आईपीएस अफसरो के इतिहास पर गौर करें तो यह ललित विजय सिंह के लिए वरदान साबित हो चुकी है। उन्होंने साल 1989 में जनता दल के टिकट पर बेगूसराय से जीत हासिल की थी।

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