
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एच-1बी वीजा नीति पर रुख दो महीने बाद नरम पड़ने लगा है। फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया कि अमेरिका को विदेशी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है, क्योंकि देश केवल लंबे समय से बेरोजगार अमेरिकियों पर निर्भर रहकर अपनी उद्योगों और प्रौद्योगिकी को आगे नहीं बढ़ा सकता। ट्रंप ने कहा, “मैं सहमत हूं कि अमेरिकी मजदूरों की तनख्वाह बढ़ानी चाहिए, लेकिन हमें यह टैलेंट भी लाना होगा। अमेरिका को दुनिया में आगे बनाए रखने के लिए ये जरूरी है।”
ट्रंप ने जॉर्जिया राज्य के एक ह्युंडई बैटरी फैक्ट्री का उदाहरण देते हुए बताया कि सितंबर में आईसीई (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) की छापेमारी के बाद दक्षिण कोरिया से आए 300 से अधिक कुशल श्रमिकों को वापस भेज दिया गया, जिससे उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया। उन्होंने कहा, “बैटरियां बनाना जटिल और खतरनाक काम है। कोरिया से आए विशेषज्ञ अमेरिकी कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे रहे थे। जब उन्हें भेज दिया गया, तो व्यवस्था बिगड़ गई।” ट्रंप ने आगे कहा, “हर बेरोजगार को मिसाइल बनाना नहीं सिखाया जा सकता। कुछ स्किल्स ऐसी हैं जिन्हें ट्रेनिंग और अनुभव की जरूरत होती है।”
नई वीजा नीति में बदलाव का असर
सितंबर 2025 में ट्रंप ने एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत नए एच-1बी वीजा आवेदनों के लिए फीस को 1,500 डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) कर दिया गया। यह नियम 21 सितंबर 2025 के बाद दाखिल सभी नए आवेदनों या 2026 की वीजा लॉटरी पर लागू होगा। हालांकि, मौजूदा वीजा धारक या पहले आवेदन करने वाले इससे अछूते रहेंगे। इस बदलाव से टेक कंपनियां और यूनिवर्सिटी परेशान हैं, क्योंकि यह विदेशी टैलेंट को आकर्षित करने में बाधा डाल सकता है।
ट्रंप का यह बयान उनके पहले के सख्त रुख से अलग है, जब वे विदेशी कामगारों को अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा मानते थे। अब उन्होंने माना कि कई क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करने में वर्षों लगेंगे, इसलिए विशेषज्ञों को आयात करना जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक हो सकता है, लेकिन फीस वृद्धि से छोटी कंपनियां प्रभावित होंगी।





