1931 में हुआ था आंदोलन का उदय महराजगंज के काशीनाथ बने थे तहसील मंत्री

महराजगंज जिले के विशुनपुर गबडुआ शहीद स्मारक स्वाधीनता आंदोलन के अमर सपूतों की याद दिलाता है। यहां अंग्रेजों ने ऐसा कहर बरपाया था कि रूह कांप गई थी। निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई गई थी। अमर सपूतों की याद में यहां स्मारक बना है। लेकिन अभी बेहतर ढंग से स्मारक को विकसित नहीं किया जा सका।

1942 में असहयोग आंदोलन को तेज करने के लिए प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने क्षेत्र में जन जागृति के लिए टोलियां बनाई। स्वतंत्रता संग्राम में विशुनपुर गबडुआ गांव के उत्साह को देखते हुए उन्होंने गांव के काशीनाथ को तहसील स्तर का मंत्री बनाया गया। गांव की टोली का नायक रामदेव को बनाया गया।
26 अगस्त 1942 की रात्रि के जमींदार हरपुर महंत महेंद्रानंद गिरि ने आंदोलन की संभावित बैठक में अंग्रेजों ने प्रोफेसर सक्सेना को पकड़ने की योजना बनाई। लेकिन सफलता नहीं मिली। गोरखपुर के तत्कालीन, जिलाधीश ई.वी.डी. मास के आदेश पर 27 अगस्त 1942 को विशुनपुर गबडुआ गांव में निहत्थे एवं शांतिप्रिय नागरिकों पर गोली चलाई गई, जिसमें सुखराज एवं झिनकू दो क्रांतिकारी शहीद हो गए थे।
दर्जनों लोग लहूलुहान हुए और 11 लोगों को जेल की यातना झेलनी पड़ी। अंग्रेजों के तांडव के बाद भी ग्रामीणों का हौसला नहीं टूटा। बल्कि दोगुने उत्साह के साथ ग्रामीण स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।
जवाहर लाल नेहरू पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज महराजगंज के राजनीति विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. घनश्याम शर्मा ने बताया कि जनपद में स्वतंत्रता संग्राम का उदय 1931 में प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के आने पर हुआ। इसके पूर्व जनपद में जमींदारों का वर्चस्व रहा।

इन जमींदारों में रामपुर बल्डीहा के लक्ष्मण प्रसाद तिवारी, हरपुर के महंत लक्ष्मीशंकर एवं इनके भाई सिसवां बाजार के नवल किशोर सिंह तथा परमहंस सिंह, रजवल एवं करमहा के भगवती प्रसाद सिंह आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त गोरखपुर निवासी पुरूषोत्तमदास रईस तथा चतुर्भुज दास आदि की भी जमींदारियां रही हैं।

महात्मा गांधी के 1930 में नमक सत्याग्रह एवं 1931 में जमींदारों के अत्याचार के विरूद्ध यहां की जनता ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के नेतृत्व में हिस्सा लिया। शहीदों की याद में विशुनपुर गबडुआ में स्मारक बना है।

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