1528 से लेकर 5 अगस्त 2020 तक कुछ यूं चलता रहा राम मंदिर निर्माण की दिशा में कार्य

अयोध्या. राम नगरी अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन की शुभ घड़ी आ चुकी है। बरसों के इंतज़ार के बाद आज(5 अगस्त, 2020) को यह एतिहासिक पल आया है। करीब 100 साल से ज्यादा तक कानूनी और राजनीतिक लड़ाई के बाद आखिरकार आज(5 अगस्त, 2020) राम मंदिर निर्माण का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस पल के साक्षी बनने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम बड़े राजनेता , बड़े चेहरे और आदरणीय साधु संत मौजूद होंगे।

आपको बता दें, पीएम मोदी सुबह 11:30 बजे से लेकर करीब 3 घंटे तक अयोध्या में रहेंगे। खबरों के मुताबिक, पीएम मोदी 5 अगस्त 2020 को दोपहर 12:30 बजे श्री राम जन्मभूमि का भूमि पूजन करेंगे। बता दें, साल 2019 में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने श्री राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को विवादित स्थल से दूर 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए देने का भी आदेश जारी किए थे।


श्री राम मंदिर निर्माण का 1528 से लेकर 2020 तक का सफर


सन् 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह पर मस्जिद बनाई गई, जिसे हिन्दू मानयता के अनुसार वहां भगवान श्री राम का जन्म जन्म स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यह मस्जिद बनवाई थी जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है।
सन् 1853 में इस मुद्दे पर पहली बार दो पक्षों के बीच विवाद हुआ।
इसके बाद सन् 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। लेकिन उनकी यह मांग खारिज कर दी गई।


सन् 1949 में जुलाई के महीने में राज्य सरकार ने मस्जिद के बाहर चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की। लेकिन यह कोशिश भी नाकाम रही।
इसके बाद सन् 1949 में दिसंबर के महीने में 22-23 तारीख को मस्जिद में भगवान श्रीराम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण की मूर्तियां रखी गईं। फिर इसी साल 29 दिसंबर को मंदिर की संपत्ति कुर्क कर ली और वहां रिसीवर बिठा दिया गया।


इन सबके बाद सन् 1950 में इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू हुआ, इस मुकदमे में जमीन के सारे दावेदार 1950 के बाद के थे। 16 जनवरी 1950 में संत गोपाल दास विशारद ने कोर्ट में रामलला की पूजा-अर्चना के अपील की। उन्होंने कहा कि मूर्तियां वहां से न हटाई जाएं और पूजा बिना रुकावट के जारी रखी जाए। इसपर अदालत ने कहा कि मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेंगे और जनता बाहर से ही दर्शन करेगी। सन् 1959 में निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में पहुंच कर दावा पेश किया।

इसके बाद सन् 1961में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी कोर्ट पहुंचकर मस्जिद का दावा पेश किया। 1 फरवरी 1986 को फैज़ाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवा के पूजा-अर्चना की इजाजत दे दी। सन् 1986 कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ। सन् 1989 में जून के महीने में भाजपा ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन दिया। सन् 1989 में नवंबर के महीने में मस्जिद से कुछ ही दूरी पर श्री राम मंदिर का शिलान्यास किया गया। 25 सितंबर सन् 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से एक रथ यात्रा शुरू की, जिसको अयोध्या तक जाना था। मगर मगर 23 अक्टूबर सन् 1990 में उन्हें बिहार में लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया।

इसके बाद कारसेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए और गुम्बद तोड़कर वहां भगवा फहराया, जिसके बाद से ही माहौल गरमा गया और दंगे भड़क गए। सन् 1991 में जून के महीने में उत्तर प्रदेश मनें बीजेपी की सरकार बनने के बनी। उसके बाद सन् 1992 में 30 अक्टूबर और 31 अक्टूबर को धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई। वहीं दूसरी ओर सन् 1992 में नवंबर के महीने में कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया। 6 दिसंबर सन् 1992 में हजारों की मात्रा में एकत्र हुए कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पहुंचकर मस्जिद को ढ़हा दिया।

इसके लिए कारसेवक 11:50 पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े. और करीब 4:30 बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी ढ़हा दिया। सन् 1992 के बाद सन् 2003 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थान पर खुदाई कराई ताकि यह पता किया जा सके कि क्या वहां पर राम मंदिर था। इसके बाद सन् 2005 में विवादित स्थान पर आतंकवादी हमला हुआ लेकिन उस हमले से वहां पर कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि हमलावर आतंकी ढ़ेर हो गए। एसके ठीक पांच साल बाद 30 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित ज़मीन को 3 हिस्सों में बांटा, जिसमें एक हिस्सा श्री राम मंदिर, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।

इसके बाद 9 मीई, 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। फिर 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन कर दिया आखिरकार 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला को दिया।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन देने का भी फैसला सुनाया। इसके बाद 5 फरवरी 2020 को राम मंदिर ट्रस्ट को मंज़ूरी मिल गई, और बुधवार , 5 अगस्त 2020 को भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए श्री राम जन्म भूमि के भूमि पूजन का शुभ कार्यक्रम आयोजित किया गया।

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