हाथ-पैर गंवाने के बाद भी 10 किमी की मैराथन पूरी कर लिखी हौसले की जबरदस्त दास्तां

हाथ-पैर गंवाने के बादनई दिल्ली। हमारे आस-पास की दुनिया में कई बार ऐसे उदाहरण आते है। जो हमें एहसास दिलाते हैं कि हमारा जीवन रुकने का नाम नहीं है बल्कि आगे बढ़ने का नाम है। जीवन में कभी भी कोई भी मुसीबत आपको परेशान तो कर सकती है लेकिन आप का रास्ता नहीं रोक सकती है। आज हम आप को ऐसी ही कहानी बता रहे हैं, जिसे जानने के बाद आप उस लड़की के जज्बे को सलाम करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। ये कहानी है शालिनी सरस्वती की। जिसके हौसले और हिम्मत की दात देनी होगी। शालिनी ने हाथ-पैर गंवाने के बाद अक्षमताओं को अपने हौसले से मात दी है। उन्होंने जिंदगी की चुनौती डट कर सामना किया और अपनी एक नई पहचान बनाई।

बेंगलुरु में रहने वाली शालिनी की कहानी सुनने के बाद आपके हौसले बुलंद हो जाएंगे। शालिनी सरस्वती के हाथ पैर नहीं है। दिव्यांग होने के बावजूत हट्टे-कट्टे लोगों को चुनौती दे डाली। शालिनी के हौसलों देखने को तब मिला जब पिछले साल देश की मशहूर कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस(टीसीएस) ने बेंगलुरु में 10 किमी मैराथन रेस का आयोजन किया।

टीसीएस वर्ल्ड 10 के नाम की यह रेस कोई दिव्यांगों की रेस नहीं थीं। बल्कि ये रेस सभी सामान्य लोगों के लिए थी। लेकिन रेस में एक लड़की दिखी जिसके न दोनों हाथ थे न पैर। आर्टिफिसियल पैर से चलकर ट्रैक पर पहुंची थी। आयोजकों ने बहुत समझाया-बुझाया मगर लड़की नहीं मानी। क्योंकि वो खुद को दूसरो से अलग व कमजोर नहीं समझती थी। इसीलिए उसने रेस में पार्ट लिया और पूरे दस किमी की दौड़ सफलतापूर्वक नाप डाली। रेस में कौन जीता इसे देखने आये दर्शको को कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों की नज़र में शालिनी ही सही विजेता बनीं। शालिनी के हौसले को उड़ान इसलिए मिली क्योंकि वह खुद को बेचारी नहीं है बहादुर समझती हैं।

जिन्दगी ने खेला शालिनी के साथ गंदा खेल

शालिनी जन्म से विक्लांग नहीं थी। साल 2013 में शालिनी शादी की सालगिरह मनाने कंबोडिया गईं थी। घर में नए मेहमान के आने की खुशी थी। लेकिन क्या पता था कि शालिनी की इन खुशियों को किसी की नज़र लग जायेगी। हुआ यू कि कंबोडिया से लौटीं के बाद शालिनी को बुखार हो गया। जाचं के बाद डॉक्टर ने डेंगू बताया और इलाज शुरू हो गया।

इस बीच शालिनी बैक्टीरिया इंफेक्शन की चपेंट में आ गईं। जिंदगी वेंटीलेटर पर हो गई। गंभीर बीमारी के चलते शालिनी ने अपना बच्चा खो दिया। दुखों का पहाड़ तब और टूट पड़ा, जब शरीर पर गैंगरीन का भी अटैक हो गया।

डॉक्टरों ने कहा-जिंदगी चाहिए तो बायां हाथ काटना पड़ेगा। अगले दिन डॉक्टरों ने बुलाया। जिंदगी बचानी थी तो शालिनी को आना ही पड़ा। शालिनी चीखती रही और कुछ ही देर बाद उसका बांया हाथ जिस्म से अलग हो चुका था।

कुछ ही महीने बाद बाएं हाथ की बीमारी दाएं हाथ को लग गई। छह महीने के बीच दायां हाथ अपने आप झूल गया। यह देखकर डॉक्टरों ने शालिनी की दोनों टांगें भी काटने का फैसला लिया। क्योंकि डॉक्टरों को रोग का खतरा पूरे शरीर में फैलने का था। इस नाते शरीर से मृत कोशिकाएं तत्काल हटानी थीं।

शालिनी ने बयां की ब्लॉग के जरिए आप बीती

शालिनी के ब्लॉग http://soulsurvivedintact।blogspot।in में उन्‍होंने लिखा है कि- ‘जब शरीर को किसी अंग की जरूरत नहीं होती तो वह उसे छोड़ देता है। मैं समझ गई थी कि जिंदगी कुछ छोड़कर आगे बढ़ने का संकेत दे रही हैं। जिस दिन मेरे पैर कटने थे-‘उस दिन मैं पैरों में चमकती लाल नैल-पोलिश लगाकर अस्पताल गई थी’। मैने सोचा-‘अगर मेरे कदम जा रहे हैं तो क्यों न उन्हें खूबसूरती से विदा करूं।’

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