सूर्य भगवान की उपासना से जीवन को बनाएंं सुखी और सौभाग्‍यशाली

सूर्य भगवानसूर्य भगवान विष्‍णु के अवतार माने जाते हैं। हिन्‍दू धर्म में सूर्य का बड़ा महत्‍व होता है। सूर्य उपासना का दिन है रविवार । सूर्य ग्रहों के राजा माने जाते हैं । ग्रह दोषों से पीडि़त लोग अगर भगवान सूर्य की उपासना करें तो उनके सभी तरह  के कष्‍ट दूर हो सकते हैं।  अगर आप इस दिन व्रत करते हैं तो आपको भगवान सूर्य की कृपा प्राप्‍त होती है। व्रत के दिन भोजन में नमक का उपयोग वर्जित माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दिखाई पड़ते हैं। रोज सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देने से सफलता, शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में सूर्य को तेज, यश, तरक्की और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि सुबह उगते सूरज के दर्शन करने से दिन दोगुनी, रात चौगुनी तरक्की होती है।

सूर्य भगवान के चालिसा का नियमित करें पाठ

॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग ॥

॥चौपाई॥

जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर ॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!, सविता हंस! सुनूर विभाकर ॥1॥

विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन ॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ॥2॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर ॥3॥

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी ॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते ॥4॥

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर ॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै ॥5॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं ॥
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै ॥6॥

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह ॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ॥7॥

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते ॥
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ॥8॥

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है ॥
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते ॥9॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत ॥
भानु नासिका वासकरहुनित, भास्कर करत सदा मुखको हित ॥10॥

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः कांधे लोभा ॥11॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर ॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन ॥12॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटिमंह, रहत मन मुदभर ॥
जंघा गोपति सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा ॥13॥

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी ॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे ॥14॥

अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै ॥15॥

अंधकार जग का जो हरता ॥
नव प्रकाश से आनन्द भरता ॥16॥

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ॥
मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके ॥17॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा ॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों ॥18॥

परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन ॥19॥

भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ॥
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता ॥20॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं ॥
पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं ॥21॥

॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख- सम्‍पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

भगवान सूर्य की ऐसे करें पूजन 
रविवार के दिन खुले आकाश के नीचे पूर्व की ओर मुंह करके शुद्ध ऊन के आसन या कुशासन पर बैठकर काले तिल, जौ, गूगल, कपूर और घी मिली हुई हवन सामग्री तैयार करके आम की लकड़ियों से अग्नि को प्रदीप्त कर उक्त मंत्र से एक सौ आठ आहुतियां दें।

इस मंत्र का करें जाप
सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए, दुःख-दारिद्र्‌य को दूर करने के लिए, रोग व दोष के शमन के लिए इस प्रभावकारी मंत्र की साधना रविवार के दिन करनी चाहिए।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।
इसके सिद्धासन लगाकर इसी मंत्र का सौ बार जप करें। जप करते समय दोनों भौंहों के मध्य भाग में भगवान सूर्य का ध्यान करते रहें। इस तरह ग्यारह दिन तक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।

प्रतिदिन स्नान के बाद तांबे के बर्तन में जल भरकर इसी मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दें। जमीन पर जल न गिरे इसलिए नीचे दूसरा तांबे का बर्तन रखें. इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करें। मात्र इतना करने से आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य और कीर्ति की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।

सूर्य देव की आरती

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान ।।

सारथी अरूण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी ।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटी किरण पसारे। तुम हो देव महान ।। ऊँ जय सूर्य…

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते ।।
फैलाते उजियारा जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान ।। ऊँ जय सूर्य…

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधुली बेला में हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।। ऊँ जय सूर्य…

देव दनुज नर नारी ऋषी मुनी वर भजते। आदित्य हृदय जपते।।

स्‍त्रोत ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी । दे नव जीवनदान ।। ऊँ जय सूर्य…

तुम हो त्रिकाल रचियता, तुम जग के आधार । महिमा तब अपरम्पार ।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते । बल बृद्धि और ज्ञान ।। ऊँ जय सूर्य……

भूचर जल चर खेचर, सब के हो प्राण तुम्हीं । सब जीवों के प्राण तुम्हीं ।।
वेद पुराण बखाने धर्म सभी तुम्हें माने । तुम ही सर्व शक्तिमान ।। ऊँ जय सूर्य…

पूजन करती दिशाएं पूजे दश दिक्पाल । तुम भुवनो के प्रतिपाल ।।

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशमान ।। ऊँ जय सूर्य…

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।।
धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान ।।

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