सपा कुनबे की रार : अखिलेश ने राम गोविन्‍द को चुना नेता विपक्ष, शिवपाल-आजम दरकिनार

 सपा कुनबे की रार लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश में करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने 8वीं बार विधायक चुने गए राम गोविन्द चौधरी को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया है। उन्हें आज आजम खां और शिवपाल यादव जैसे नेताओं पर वरीयता देते हुए सपा विधायक दल का नेता चुना गया।

सपा प्रवक्ता राजेन्‍द्र चौधरी ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रामगोविन्द को विधायक दल का नेता मनोनीत किया है। चूंकि सपा सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, लिहाजा रामगोविन्द विपक्ष के भी नेता होंगे। बलिया की बांसडीह सीट से विधायक पूर्व कैबिनेट मंत्री रामगोविन्द को अखिलेश का करीबी माना जाता है। उन्हें आजम खां और पूर्व में नेता प्रतिपक्ष रह चुके शिवपाल यादव पर तरजीह देते हुए विधायक दल का नेता चुना गया।

आठ बार के विधायक रामगोविन्द वर्ष 1977 में पहली बार तत्कालीन चिलकहर सीट से जनता पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गये थे। छात्र नेता के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले करीब 70 वर्षीय रामगोविन्द राज्य की पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री तथा बाल विकास एवं पुष्टाहार मंत्री रहे। सपा के मौजूदा विधायकों में वह सबसे वरिष्ठ हैं।

हाल में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली सपा को मात्र 47 सीटें हासिल हुई थीं, इसके बावजूद वह मुख्य विपक्षी दल बनने में कामयाब रही। उसकी सहयोगी कांग्रेस को महज सात सीटें ही हासिल हुर्इं।

उधर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने 29 को बुलाई है विधायकों की बैठक

चौधरी ने यह भी बताया कि कल सपा विधानमण्डल दल की बैठक होगी, जिसकी अध्यक्षता पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव करेंगे। आगामी 29 मार्च को सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव द्वारा विधायकों की बैठक बुलाये जाने के बारे में पूछने पर चौधरी ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।

चुनाव से पहले यादव परिवार और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में मची कलह खुलकर सामने आ गई थी। पूरी पार्टी अखिलेश और शिवपाल खेमे में बंट गई। मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े हुए नजर आए और उन्होंने अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर कर दिया था।

इसके बाद रामगोपाल यादव ने पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया, जिसमें अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। यह लड़ाई चुनाव आयोग की चौखट पर पहुंची। चुनाव आयोग ने भी पार्टी और चुनाव चिन्ह को लेकर अखिलेश यादव के पक्ष में फैसला दिया था।

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