खास परिवार में जन्म लेने से कोई महान नहीं होता’ जाने ऐसा कहने वाले महंत की महानता के बारे में…

संत तिरुवलुवर की मानवधर्म के प्रति विशेष आस्था रही है। उन्होंने जीवन मूल्यों को काफी अच्छे ढंग से समझया है। मायलापुर में एक जुलाहे परिवार में जन्में संत तिरुवलुवर ने लोगों को समझाया कि गृहस्थ या गृहस्थस्वामी का जीवन जीने के साथ-साथ एक दिव्य जीवन या शुद्ध और पवित्र जीवन भी जिया जा सकता है। इसके लिए उसे सन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है।

खास परिवार में जन्म लेने से कोई महान नहीं होता' जाने ऐसा कहने वाले महंत की महानता के बारे में...

संत तिरुवलुवर ने महान बनने के तरीके बताए

इतना ही नहीं उन्होंने लोगों को महान बनने के तरीके भी बताए। संत तिरुवलुवर ने बताया कि खास परिवार में जन्म लेने से कोर्इ महान नहीं होता है। इसके लिए उसे अपने मानवधर्म को निभाना होगा।

बेशक आज संत तिरुवलुवर इस संसार में नहीं हैं लेकिन उनकी ज्ञान भरी बातें और शिक्षा आज भी लोगों के बीच है।
133 अध्याय वाली पुस्तक ’थीरूकुरल’में इसे पढ़ा जा सकता है।

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संत तिरुवल्‍लुवर की 133 फीट लंबी है प्रतिमा

थीरूकुरल पुस्तक् को करीब 60 भाषाओं में पढ़ा जा सकता है। अधिकारिक वेबसाइट तमिल नाडुटू रिज्म के मुताबिक कन्याकुमारी में तिरुवलुवर की 133 फुट लंबी प्रतिमा है।

पत्थर की इस प्रतिमा तो वल 95 फुट की है लेकिन यह 38 फीट ऊंचे मंच पर स्थापित है।
133 फुट संत तिरुवल्‍लुवर की यह प्रति व मंच उनके पुस्तक थीरूकुरल के 133 अध्यायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

संत को दक्षिण भारत का कबीर भी कहा जाता

संत तिरुवलुवर की यह प्रतिमा 1 जनवरी 2000 को समर्पित की गई थी। खास बात तो यह है कि तब से यह प्रतिमा पर्यटकों की सूची में सबसे ऊपर है।

कन्याकुमारी घूमने आने वाले लोग, इस प्रतिका दीदार का जरूर करते हैं। संत तिरुवलुवर को दक्षिण भारत का कबीर भी कहा जाता है। कहा जाता है कि शैव, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन सभी तिरुवलुवर को अपना अनुयायी मानते हैं।

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