गज़ब का इंसान… दवाइयों का दान है मेडिसिन बाबा की पहचान

मेडिसिन बाबानई दिल्ली। कहते हैं कि इंसान के कर्म ही उसका नाम और पहचान बनाते हैं। आज के इस युग में जहां इंसान की जेब से एक रूपए निकालना मुश्किल होता है, वहीं बिना किसी फायदे के एक विकलांग अगर दूसरों के लिए दिनभर पैदल चलकर दवाइयों का दान मांगे और उसे गरीबों में बाटंता हुआ दिख जाए तो निश्‍चित ही आप हैरान हो जाएंगे। जी हां कुछ ऐसे ही है दिल्‍ली के मेडिसिन बाबा ।

यह अपने काम के प्रति इतना समर्पित हैं कि इन्‍होंने अपने कपड़ों पर गरीबों के लिए मुफ्त में दवा देने के बारे में लिखवा रखा है। कुर्ते पर फोन नंबर और ईमेल आईडी भी है, जिससे लोग उनसे संपर्क कर सकें। दोनों पैरों से अपाहिज मेडिसिन बाबा रोजाना छह से सात किलोमीटर पैदल चलकर दवा इकट्ठा करते हैं। 79 साल के मेडिसिन बाबा का असली नाम है ओंकारनाथ। पिछले आठ साल से वे यह अभियान चला रहे हैं। उनका कहना है कि वे हर महीने चार से छह लाख रुपये की दवाएं जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटते हैं।

ऐसे करते हैं दवाइयां जमा

दवाएं जमा करने के लिए मेडिसिन बाबा दिल्ली के ऐसे इलाकों में घूमते हैं जहां समृद्ध परिवार रहते हैं और जो महंगी दवा दान कर सकते हैं।वे बताते हैं, “दिल्ली में ऐसे कई परिवार हैं जो इलाज के लिए महंगी दवा खरीद सकते हैं।एक बार स्वस्थ हो जाने के बाद वे दवाएं उनके किसी काम की नहीं होतीं।कूड़े में फेंकने के बजाय ऐसी दवाएं मेरे काम आ जाती हैं।मैं इन्हें आगे जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचाता हूं.” उनका कहना है कि दवा लेने से पहले वे सुनिश्चित कर लेते हैं कि दवा एक्सपायर न हो और मरीजों के सेवन लायक हो।

इन दवाओं को जमा करने के लिए उन्हें दर दर भटकना पड़ता है लेकिन बांटने के लिए उनके पास अपना एक दफ्तर है। दरअसल दक्षिण पश्चिम दिल्ली के मंगलापुरी में स्थित एक बस्ती में मेडिसिन बाबा का घर है।और यहीं एक छोटे से किराए के कमरे से वे अपना दफ्तर भी चलाते हैं।उनका छोटा सा कमरा दवाओं से भरा पड़ा है।रोजाना शाम चार बजे से लेकर रात के आठ बजे तक वे गरीब और जरूरतमंदों को मुफ्त में दवा बांटते हैं।वे बताते हैं, “पहले लोग कहते थे कि इसने भीख मांगने का नया तरीका निकाल लिया है।लेकिन मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता था।मैं अपना काम सच्ची लगन के साथ करता गया।अब महीने में 400 से लेकर 600 मरीज मेरे पास दवा लेने आते हैं.”

मेडिसिन बैंक के जरिए होती है मदद

महंगी दवा और अन्य खर्च के लिए पैसे जुटाने के लिए बाबा ने अपने दफ्तर में एक दान पेटी भी लगाई है।वे कहते हैं कि कुछ ऐसे भी मरीज आते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक ठाक होती है, ऐसे मरीजों से मैं 10-20 रुपये दान करने की गुजारिश करता हूं।इस पैसे से मैं, मेरे पास जो दवा नहीं होती, उसे खरीद लेता हूं।

ओंकारनाथ बताते हैं कि उन्हें मेडिसिन बैंक चलाने की प्रेरणा कुछ साल पहले दिल्ली के लक्ष्मीनगर में मेट्रो के एक निर्माणाधीन पुल के गिर जाने के हादसे के बाद मिली, “उस हादसे में दो मजदूर मारे गए और जो जख्मी हुए उनके पास इलाज के लिए और दवा खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखते थे जो अस्पताल में मौजूद नहीं होती थी।मजदूर तो सड़क पर ही जिंदगी गुजारते हैं, वे भला कैसे बाजार से महंगी दवा खरीद सकते हैं? तभी से मैंने ऐसे पीड़ितों के लिए दवाएं जमा करने का संकल्प किया।

बाबा अपने इस अभियान को आगे बढ़ाना चाहते हैं और देश के अलग अलग राज्यों में भी ऐसा बैंक खोलना चाहते हैं।भविष्य में वे एक बड़ा दफ्तर और स्टोरेज के लिए ज्यादा जगह किराए पर लेने की योजना बना रहे हैं लेकिन फंड की कमी की वजह से विस्तार नहीं कर पा रहे हैं।अपने काम के बारे में उनका कहना है, मुझे यह काम करके बहुत संतोष मिलता है।अमीर परिवारों के लिए ऐसी दवाएं कचरा हैं।लेकिन गरीबों के लिए ये वरदान साबित हो रही हैं।

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