आवारा कुत्तों ने उड़ाई मुख्यमंत्री की नींद, सुरक्षा कर्मियों ने भी मानी हार

मुख्यमंत्री की सुरक्षादेहरादून। आजकल मुख्यमंत्री की नींद उड़ी है। इसको लेकर मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात कार्मिक भी परेशान हैं। जी नहीं, यह कोई राजनीतिक या सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को लेकर नहीं हुआ है, बल्कि आवारा कुत्तों ने ‘सरकार’ की नींद उड़ाई है। दरअसल, कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के आसपास आवारा कुत्तों का झुंड रहता है, जो देर रात तक आवास के सामने भौंकता रहता है। सीएम सुरक्षा की ओर से शहरी विकास विभाग और एक गैर सरकारी संस्था को पत्र भेज इस समस्या से निजात दिलाने की मांग की गई है।

सरकार की नींद में खलल पड़ा तो एक बार फिर सबका ध्यान आवारा कुत्तों की ओर गया हैं। हालांकि, पूरे प्रदेश में आवारा कुत्ते लोगों के लिए आफत बने हुए हैं। करीब तीन साल पहले आवारा कुत्तों का मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा था। उच्च न्यायालय ने नगर निगम को कुत्तों की नसबंदी के पुख्ता इंतजाम करने के आदेश भी दिए थे, लेकिन अभी तक इस मामले में ठोस समाधान नहीं हो पाया।

राजधानी देहरादून की ही बात करें तो करीब 50 हजार आवारा कुत्ते शहर में हैं। इनमें से कुछ बेहद खतरनाक श्रेणी के हैं। दून अस्पताल के आंकड़ों पर गौर करें तो अमूमन हर रोज 20 से 25 लोग कुत्तों के काटने का शिकार बनते हैं। नगर निगम के एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर को शुरू हुए छह माह से ज्यादा हो गए, लेकिन अभी तक कुत्तों की नसबंदी करने के मामले में यह केंद्र सुस्त ही नजर आ रहा है। छह माह में करीब चार हजार कुत्तों की नसबंदी ही की जा सकी है। वहीं, शहर में कुत्तों की संख्या में तेजी से इजाफा जारी है।

मुख्यमंत्री आवास के बाहर कुत्तों का जमघट इतना विकराल रूप धारण कर चुका है कि मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारियों की ओर से कुत्तों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए बंध्याकरण करने को एक गैर सरकारी संस्था को भी पत्र भेजा गया है। यह संस्था पशु संरक्षण के क्षेत्र में काम करती है। इसके साथ ही शहरी विकास विभाग को भी इस मामले में पत्र भेज कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण के लिए जरूरी इंतजाम किए जाने की मांग की गई है।

कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण में पशु क्रूरता अधिनियम भी आड़े आता है। इसलिए नगर निगम कर्मी भी कुत्तों को पकड़ने में हीलाहवाली करते हैं। खैर, मामला प्रदेश के मुखिया की नींद से जुड़ा तो समाधान की उम्मीद जरूर है, लेकिन समाधान केवल एक क्षेत्र तक सीमित रहेगा या बाकी हिस्सों के हिस्से में भी राहत आएगी, कहना मुश्किल है।

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