कहीं होली के त्योहार का रंग फीका न कर दे मिलावटी मावा

होली पर एक तरफ रंगों की फुहार और मुंह मीठा कराने के लिए मावे की मिठाई और गुझिया न हो, यह उतना ही अटपटा लगता है जितना बिना रंग व पानी के होली खेलना। त्योहार मनाइये, लेकिन जरा सोचिए कि शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में पशुओं की लगातार कमी के बावजूद दूध व इससे बने उत्पादों की मांग को लगातार बढ़ते जाने के बाद भी पूरा किया जा रहा है। त्योहार पर दूध व इससे बने उत्पादों की मांग अचानक बढ़ती है और हर वर्ष इसे पूरा किया जाता है। आखिर कैसे? साफ है कि कहीं न कहीं मिलावटी खाद्य सामग्री से मांग को पूरा किया जाता है। इसके बारे में जानते तो सभी हैं, लेकिन बचाव में कुछ करने में नाकाम है। मिलावट की प्रबल आशंका होने के बाद भी लोग त्योहारों पर उपहार के रूप में मिठाई देते हैं। दूध की कमी के बावजूद मिलावटखोर पूरे वर्ष दूध, मावा व पनीर जैसे खाद्य पदार्थो की कमी नहीं होने देते। इस स्थिति में त्योहार पर मिलावटी मिठाई खाकर त्योहार पर तो आनंद लिया जा सकता है, लेकिन यह आपको और अपने चहेतों को बीमार भी कर सकता है। ऐसे में होली की उमंग और रंग फीके न पड़ जाए, इसके लिए स्वयं मिलावटी मावे व मिलावटी खाद्य सामग्री से बनी मिठाइयों के प्रति जागरूक होना होगा।

मिलावटी मावा

पहले लोग बाजार से मावा खरीदकर घर पर गुझिया या अन्य मिठाई बनाते हैं। अब समय के अभाव में लोग बाजार से बनी बनाई गुझिया खरीद लेते हैं। आज भी बाजार में मावे की मिठाई और दूध से बने अन्य व्यंजनों की कोई कमी नहीं है। होली पर अचानक मिठाइयों की मांग बढ़ती है, उसे हर वर्ष पूरा भी किया जाता है। जगह-जगह दुकानें सजती हैं और त्योहार के कई दिनों बाद तक दुकानों पर मिठाइयों का ढेर लगा रहता है।

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इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि होली पर मिलावटी दूध और मावे से विभिन्न प्रकार के मिठाइयां बनाई जाएंगी। ऐसे में ग्राहक अनजाने में ही खुद, परिजन व उन खास लोगों को बीमारी की तरफ धकेल देते हैं। इन्हें वह स्नेह और श्रद्धा स्वरूप मिठाई देते हैं। अब तक किसी भी गांव, सेक्टर या दुकान में स्वास्थ्य विभाग या प्रशासन की टीम ने मिलावटी मावा या पनीर पकड़ने के लिये कार्यवाई नहीं की है। इसके कारण बाजार में दूध से बने मावा व पनीर आदि भरपूर मात्रा में आने की आशंका बनी हुई है।

कैसे बनता है मिलावटी मावा

मिलावटी मावा बनाने के लिए दूध की बजाय दूध पाउडर, रसायन, आलू, शकरकंदी, रिफाइंड तेल आदि प्रयोग किए जाते हैं। सिंथेटिक दूध बनाने के लिए पानी में डिटर्जेट पाउडर, तरल जैल, चिकनाहट लाने के लिए रिफाइंड व मोबिल आयल एवं एसेंट पाउडर डालकर दूध को बनाया जाता है। यूरिया का घोल व उसमें पाउडर व मोबिल डालकर भी सिंथेटिक दूध तैयार किया जाता है। इसमें थोड़ा असली दूध मिलाकर सोखता कागज डाला जाता है। इससे नकली मावा व पनीर भी तैयार किया जाता है।

कैसे बचें मिलावट से

मावे में मिलावट की पहचान आयोडीन जांच या फिर चखकर उसके स्वाद और रंग से की जा सकती है। सामान्य तौर पर लोग आयोडीन की जांच नहीं कर पाते। लेकिन मिलावटी मावे से बचने के लिए उसे पूरी तरह जांच परख ले। मिलावटी या नकली मावे का स्वाद व रंग सामान्य से विभिन्न और कुछ खराब होता है।

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मिलावट के चलते प्रभावित रहेगी बिक्री

मिलावट के प्रति लोगों के जागरूक होने के कारण पिछले वर्ष मावे व मावे से बनी मिठाइयों की बिक्री कम हुई थी। मावे की मिठाई की जगह अन्य उपहारों ने ले ली है। खुद दुकानदारों को भी उम्मीद है कि शहरी क्षेत्र में लोग मावे की मिठाई कम खरीदेंगे। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी लोग मावे से बनी मिठाइयों को ही पसंद करते हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में मावे की खपत अधिक होगी।

शुद्ध मावा की कीमत रहेगी 200 रुपये प्रति किलो

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