महिला संन्यासी बनना आसान नहीं, करना पड़ता है पंच संस्कार
कुंभ में नागा साधुओं के साथ-साथ महिला संन्यासिनी भी आई हुई हैं. इनकी छावनी संन्यासिनी पंच दशनाम जूना अखाड़ा के नाम से सेक्टर-16 में बसी हुई है. छावनी में जाने पर पता चलता है कि महिला संन्यासिनी बनना आसान नहीं. इससे पूर्व उन्हें अपने गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह इस श्रेणी की संन्यासी बनने के लायक हैं.
पंच संस्कार के पांच मुख्य गुण
- संन्यासिनी बनने से पहले महिला के पंच संस्कार के लिए पांच गुण होते हैं.
- मुख्य गुण शाखा गुरु का होता है.
- उसके बाद लंगोटी गुरु,
- वस्त्र गुरु,
- कंठी गुरु व
- भभूति गुरु जैसे संस्कार शामिल होते हैं.
सिर्फ कुंभ में संन्यासी संस्कार
महिलाओं का पंच संस्कार कभी भी किया जा सकता है. लेकिन संन्यासी बनने की संस्कार प्रक्रिया सिर्फ कुंभ मेला में ही ही कराई जाती हैं. चाहे कुंभ प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक व या फिर उज्जैन कुंभ.
पंच संस्कार के लिए महिला को सिर्फ एक वस्त्र दिया जाता है. यह संस्कार अंतिम शाही स्नान पर्व से किए जाने की परंपरा का पालन जूना अखाड़ा में किया जाता है.
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रहता पड़ता है दिन-रात भूखा-प्यासा
-एक वस्त्र में जब महिलाएं अपने गुरु के सान्निध्य में गंगाजी में जाती हैं तो उन्हें हाथों में दंड व कमंडल लेना पड़ता है.
-गंगा में पंडित द्वारा विधिविधान से पिंडदान कराया जाता है.
-गंगाजी में जाने से पहले सूर्योदय से ही महिला को भूखे-प्यासे रहना पड़ता है.
-पिंडदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद शिविर में वापस आकर अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे बैठकर रातभर भजन करना होता है.
-ब्रह्म मुहूर्त में गुरु जी के सानिध्य में विजय हवन होता है.
-इसके बाद फिर गुरु के सानिध्य में महिला को गंगा जी जाना होता है.
-फिर अनिवार्य रूप से महिला को 108 बार डुबकी लगानी होती है.
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-डुबकी लगाने के बाद दंड-कमंडल व वस्त्र को वहीं पर छोड़ दिया जाता है.
-फिर गुरु जी गुरु मंत्र देते हैं और संन्यास के बारे में शिक्षा देते हैं.
कोतवाल देते हैं संस्कार की सूचना
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कुंभ के दौरान प्रत्येक अखाड़े की छावनी में एक कोतवाल नियुक्त होता है. संन्यास की प्रक्रिया कब होगी और उसकी टाइमिंग क्या निर्धारित की जाए इसकी जानकारी महिला को कोतवाल द्वारा दी जाती है. संस्कार प्रक्रिया के दौरान सबसे पहले साधु को नागा बनाया जाता है. उसके बाद महिला को संन्यासिनी बनाते हैं. इसके लिए अखाड़े के मुख्यालय में पर्ची कटती है. बाल्यावस्था से लेकर किसी भी उम्र की महिला संन्यासिनी बन सकती हैं.
छूट जाता है घर-परिवार और रिश्तेदार
जब महिला का पंच संस्कार हो जाता है और उस समय तीन-तीन पीढि़यों का पिंडदान कराया जाता है. उसके बाद उनका नया जीवन शुरू हो जाता है यानि साधु परिवार में एंट्री हो जाती है.
पंडित जी महिला को बताते हैं कि अब आपको कभी अपने घर नहीं जाना है. महिला सिर्फ उस समय ही अपने घर जा सकती है जब उनके माता या पिता की मृत्यु होती है. इसकी बड़ी वजह यही है कि माता-पिता महिला के पहले गुरु होते है.
महिला संन्यासी बनने के लिए उम्र की कोई बाध्यता नहीं. यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि उसे संन्यासी बनना है या नहीं. महिला का सबसे पहले पंच संस्कार किया जाता है.
इसके बाद ही महिला संन्यासी बन सकती हैं. बिना पंच संस्कार के महिला संन्यासी कभी नहीं बन सकती है.