भारत की प्रथम साहसी बैरिस्टर महिला, कॉर्नेलिया सोराबजी

कॉर्नेलिया सोराबजी का नाम भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के तौर पर लिया जाता है। ये बड़ी गौरव की बात है कि जिस जमाने में भारत की महिलाओं को घर की चार दिवारों से निकलनें नही दिया जाता था। वहीं कॉर्नेलिया ने बैरिस्टर बनने की सोची। कॉर्नेलिया ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री ली साथ ही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की। भारत में आजादी के पूर्व किसी भी महिला के लिए उच्च शिक्षा की पढ़ाई करना आसान कार्य नही था।

आपको बतादें कि कर्नेलिया की शिक्षा के दौरान उन्हे बहुत कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा था। स्नातक में वे सबसे ज्यादा अंक लाई थी पर इसके बावजूद भी उन्हें औरों की तरह स्कॉलरशिप नहीं दी गई और इस तरह वे इसकी हकदार होते हुए भी इससे वंचित रह गई। जैसे-तैसे स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वाकालत की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड जाना बेहद मुश्किल भरा था। अंग्रेज महिलाओं ने कर्नेलिया के साहस को देख उनके लिए फंड जुटाया साथ ही उन्हें ऑक्सफोर्ड भी पहुंचाया।

बतादें कि कर्नेलिया 1892 में बैचलर ऑफ सिविल लॉ की परीक्षा पास करने वाली विश्व की प्रथम महिला बनीं। उस समय किसी भी महिला को वकालत के लिए रजिस्टर करने और उसके प्रेक्टिस करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा था जिसके कारण कर्नेलिया को उनकी डिग्री नही मिल सकी थी।

कर्नेलिया हार मानने वालें में से नही थी। इस के बाद जब वे भारत लौट आई तब उन्होंने महिलाओं के साथ होने वाले अन्नाय, अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। कर्नेलिया के इस निर्णय के बाद महिलाओं को कुछ हद तक न्याय मिलना शुरु होने लगा था। कर्नेलिया नें अपनी वकालत के दौरान 600 महिलाओं को कानूनी सलाह दी जिसको देखते हुए 1922 में लंदन बार नें महिलाओं को भी वकालत की पढ़ाई के साथ-साथ प्रेक्टिस करने की इजाजत दे दी।

इसके बाद कर्नेलिया को उनकी बैरिस्टर की डिग्री दे दी गई। इस तरह कर्नेलिया ने महिलाओं को न्याय दिलाने में हर एक मुमकिन प्रयास किया और उस समय ये महिलाओं के लिए एक मसीहा से कम नही थी। अगर इन्होंने हिम्मत ना दिखाई होती तो शायद आज भी महिलाओं के साथ न्याय ना हो रहा होता। शायद आज भी महिलाओं के हिस्से में सिर्फ चूल्हा-चौका ही होता और उनकी दुनिया सिमट के रह जाती

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