भगवान शिव ही हैं पहले योगी

वराह काल के प्रारंभ में जब देवी देवताओं ने पृथ्‍वी पर कदम रखा उस समय पृथ्‍वी पर चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी इस लिए भगवान शिव ने हिमालय के कैलाश पर्वत को अपना निवास बनाया। पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के ऊपर स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था।

भगवान शिव

शास्‍त्रों के अनुसार भगवान शिव ही पहले योगी हैं और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। उन्होंने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं।

योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की और हिमालय पर एक प्रचंड और भाव विभोर कर देने वाला नत्य किया। वे कुछ देर परमानंद में पागलों की तरह नृत्य करते, फिर शांत होकर पूरी तरह से निश्चल हो जाते। उनके इस अनोखे अनुभव के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था।

आखिरकार लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और वे इसे जानने को उत्सुक होकर धीरे-धीरे उनके पास पहुंचने। लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि आदि योगी तो इन लोगों की मौजूदगी से पूरी तरह बेखबर थे। उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उनके इर्द गिर्द क्या हो रहा है! उन लोगो ने वहीं कुछ देर इंतजार किया और फिर थक हारकर वापस लौट आए।

उन लोगों में से सात लोग ऐसे थे, जो थोड़े हठी किस्म के थे। उन्होंने ठान लिया कि वे शिव से इस राज को जानकर ही रहेंगे। लेकिन शिव ध्‍यान अवस्‍था में थे फिर दिन, सप्ताह, महीने, साल गुजरते गए और ये लोग तैयारियां करते रहे, लेकिन शिव धयान अवस्‍था में थे। 84 साल की लंबी साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति के शरद संक्रांति में बदलने पर पहली पूर्णिमा का दिन आया, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण में चला गया। पूर्णिमा के इस दिन आदि योगी शिव ने अपना ध्‍यान खोला और इन सात तपस्वियों को देखा तो पाया कि साधना करते-करते सातों ऋषि इतने पक चुके हैं कि ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार थे

शिव ने इन सातों को अगले 28 दिनों तक बेहद नजदीक से देखा और अगली पूर्णिमा पर इनका गुरु बनकर इनको योग की शिक्षा दी। केदारनाथ से थोड़ा ऊपर जाने पर एक झील है, जिसे कांति सरोवर कहते हैं। इस झील के किनारे शिव दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गए और अपनी कृपा लोगों पर बरसानी शुरू कर दी। इस तरह योग विज्ञान का संचार होना शुरू हुआ।

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