जानिए बवासीर रोग के कारण और घरेलू उपचार

बवासीर, पाईल्स या अर्श रोग में रोगी को बहुत पीड़ा होती है। रोगी को कुर्सी पर बैठने और कहीं आने-जाने में बहुत पीड़ा होती है। अर्श रोग के उपचार में देर की जाए तो ज्यादा रक्तस्राव होने लगता है | ज्यादा रक्त निकलने से (एनीमिया) भी हो सकता है जिससे रोगी बहुत कमजोर हो जाता है और रोग के पुराने होने के साथ-साथ रोगी को चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। पांव लड़खड़ाने लगते हैं। आँखों के सामने अंधेरा छाने लगता है। सिर में चक्कर आने लगते हैं। अधिक रक्तस्त्राव होने से जानलेवा स्थिति बन जाती है।

जानिए बवासीर रोग के कारण और घरेलू उपचार

बवासीर के कारण :

मुख्यतः कब्ज के कारण बवासीर की उत्पति होती है। होटल, रेस्तरां या बाजार में अक्सर लोग ज्यादा मिर्च मसालेदार मैदे से बने चटपटे व्यंजनों का अधिक सेवन करते हैं जिससे पाचन क्रिया की खराबी से कब्ज  हो जाती है। मल शुष्क होकर अधिक कठोर हो जाता है। ऐसे कठोर मल को शौच के समय निष्कासित करने में बहुत जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने के कारण मल द्वार के भीतर की त्वचा छिल जाती है। भीतर जख्म बन जाने से रक्त निकलने लगता है। रात में अधिक दर्द होने से नींद भी कम हो जाती है जो कब्ज को और बढ़ा देती है इस प्रकार बवासीर रोग में अन्य रोगों की एक श्रंखला सी बन जाती है |

इस रोग का उपचार सरल नहीं होता है खासकर पुरानी बवासीर का, दरअसल इस रोग में सबसे जरुरी होता है परहेज रखना जैसे -तेल घी में तले हुए मिर्च मसालेदार पकवान, शराब, चाय और अन्य गर्म तासीर की चीजो से पूरी तरह दूर रहना वो भी एक लंबे समय तक | साथ ही रोगी को एक नियमित जीवन शैली जरुर अपनानी चाहिए जिसमे समय से सोना (कम से कम आठ घंटे) और सुबह जल्दी छह बजे उठाना और तरल पदार्थो का अधिक सेवन, मानसिक तनाव से दूर रहना | ज्यादातर अर्श रोगी केवल दवाओ का सेवन करते है पर चूंके परहेज काफी लंबे और कठिन होते है इसलिए वो अक्सर इनका पालन पूरी तरह से नहीं कर पाते है और इस रोग को और भी गंभीर बना लेते है फिर वो धीरे-धीरे नासूर में बदल जाता है | कब्ज इस रोग में सबसे बड़ा दुश्मन होता है |

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 बवासीर के घरेलू उपचार :

  • रीठे के छिलके का कपड़े से बारीक छना हुआ पाउडर में थोडा सा पानी मिलाकर सिर्फ इतना की आप इसकी बेर जितनी छोटी छोटी गोलियां बना सके अब इन्हें किसी डब्बे में सुरक्षित रख लें। यह 1-1 गोली सुबह व शाम को मिश्री मिले हुए 250 ग्राम दूध के साथ निगल जाएं (गोली को चबाये नहीं क्योंकि रीठा चबाने से उलटी पड़ सकती है) 7 दिन के इस प्रयोग से खूनी बवासीर में लाभ मिल जाता हैं।
  • रीठे के छिलके और सफेद कत्था समान मात्रा में लें। रीठे के छिलकों को तवे पर इतना भूनें कि उनका तेल न जलने पाएं। जब ये आपस में चिपकने लग जाएं और भुन जाएं तब उतारकर रीठे व कत्था (दोनों) को पीसकर चूर्ण बना लें। 14 से 8 ग्रेन तक की मात्रा में इस चूर्ण को मक्खन के साथ रोगी को खिलाने से बादी बवासीर ठीक हो जाती है। तो इस प्रयोग से बवासीर रोग पूरी तरह ठीक हो जायेगा यदि 6 माह के बाद 1 बार फिर से 7 दिन के लिए यह प्रयोग कर लिया जाए तो जीवन भर यह रोग फिर से होने का भय नहीं रहता है। इस प्रयोग के समय 3 दिन तक नमक न खाएं तथा 7 दिन तक खटाई से भी परहेज रखें।

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  • उत्तम व ताजा मुनक्का 15 दानों को पानी से अच्छी तरह से साफ़ करके रात के समय 150 मि.ली. पानी में भिगो दें और सुबह से समय इन फूले हुए मुनक्कों के बीज निकालकर एक-एक करके खूब चबा-चबाकर खा लें तथा बचे हुए पानी में थोड़ी चीनी मिलाकर अथवा ऐसे ही बिना चीनी मिलाए पी जाएं। इस प्रयोग को निरंतर 1 माह तक करने से कब्ज, बवासीर से छुटकारा मिल जायेगा |
  • बवासीर से पीड़ित रोगी अंजीर 2-3 नग लेकर सुबह के समय भिगोकर रात में खाना खाने के बाद सोते समय इन अंजीरो को खाएं और रात में भिगोए हुए सुबह के समय खाने से प्रत्येक प्रकार की बवासीर दूर होती है। यह प्रयोग निरंतर 1 माह तक करें। विशेष : कमजोर दांत वाले रोगी को इन सूखे अंजीरों को थोड़े पानी, सिर्फ इतना ही डालें कि जिससे यह अंजीर पानी को अपने अंदर सोख ले और बर्तन में फालतू पानी शेष न रहे। पानी पीकर यह अंजीर फूल जाएगी और ताजा अंजीर के समान कोमल और स्वादिष्ट हो जाएगी जिससे उन्हें चबाने में आसानी होगी ।
  • छोटी हरड 250 ग्राम लेकर 4 दिन तक मूली के रस में भिगोकर रखें। उसके बाद 2 दिन तक कुकरौधा के रस में भिगोकर रखें। उसके बाद हरड को छाया में सुखा कर इसका चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इस चूर्ण को 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह व रात को खाना खाने के बाद (सोते समय) फांकें और ऊपर से मुनक्का 5 नग (बीजरहित) चबाकर खाएं। इस प्रयोग को निरंतर 40 दिन तक करने से खूनी व बादी बवासीर में बहुत लाभ होता है।
  • अनार के छिलकों का क्वाथ बनाकर सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से अर्श रोग ठीक होता है।
  • त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला) का चूर्ण तीन ग्राम मात्रा में रात को हल्के गर्म दूध के साथ सेवन करने से कब्ज नष्ट होने पर अर्श में पीड़ा कम होती है।
  • गाजर और पालक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से कुछ ही दिनों में लाभ मिलने लगता है।
  • अनार के वृक्ष की छाल और छोटी हरड़ 50-50 ग्राम और रसौत 5 ग्राम कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाएं। 5 ग्राम चूर्ण प्रात:काल पानी के साथ सेवन करने से अर्श में रक्तस्राव जल्द ही बंद होता है।
  • करेले या करेले के पत्तो का रस 20 ग्राम लेकर उसमें मिसरी 10 ग्राम मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह सेवन करने से बवासीर में रक्तस्राव बंद होता है।
  • सूखे नारियल की जटा की राख (भस्म) को कपड़े से बारीक छान ले और इसकी 3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार खाली पेट 1 या डेढ़ कप छाछ अथवा दही (जो खट्टा न हो) के साथ सेवन करने से खूनी व बादी बवासीर का रोग ठीक हो जाता है। प्रयोग केवल 1 दिन ही करें। यदि आवश्यकता हो तो और भी मात्राएं सेवन की जा सकती हैं। यह प्रयोग नए व पुराने बवासीर रोग में रामबाण अचूक औषधि है।
  • नारियल की जटा जलाकर राख बना लें और समान भाग में बूरा मिलाकर 10–10 ग्राम की मात्रा में पानी के अनुपान से सेवन कराएं। खूनी बवासीर में लाभप्रद है।

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  • त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच-भर (4-5 ग्राम) रात में सोते समय खाना खाने के बाद निरंतर सेवन करते रहने तथा ‘त्रिफला जल’ (25 ग्राम त्रिफला चूर्ण को 500 ग्राम पानी में 12 घंटे भिगोकर) से गुदा को भली प्रकार धोते रहने से गुदा की खुजली व बवासीर में लाभ होता है।
  • बवासीर के मस्सों पर नीम का तेल लगाना भी लाभदायक है।
  • बिना छिलके वाली इमली के बीज तवे पर भूनकर तथा पीसकर सुरक्षित रख लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में 125 ग्राम दही में मिलाकर मरीज को सेवन करवाएं, खूनी बवासीर का रक्त बंद हो जायेगा |

याद रखें बवासीर रोग में परहेज इलाज जितने ही महत्त्वपूर्ण होते है खासतौर से कब्ज ना रहने दे और उपयुक्त आहार लें |

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