प्रेरक प्रसंग : सच्ची पूजा

डेरा गाजी खान में राय साहब रघुनाथदास हकीम अपने युवा पुत्र श्यामदास के साथ रोगियों की सेवा किया करते थे। पूरा परिवार चैतन्य महाप्रभु का अनन्य भक्त था। भारत विभाजन होने के बाद उनके पूरे परिवार को डेरा गाजी खान से पलायन करना पड़ा। वहां से वह वृंदावन पहुंचे और अपने परिवार के साथ रहने लगे। श्यामदास हकीम जी ने साधना के साथ-साथ जीविकोपार्जन व सेवा के उद्देश्य से रोगियों की चिकित्सा का काम शुरू किया।

प्रेरक प्रसंग

एक छोटे से मकान में औषधालय खोला। उन्होंने संकल्प लिया कि वह अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की लीलाभूमि के गरीबों की चिकित्सा नि:शुल्क करेंगे। दीवाली आने वाली थी। पूरा वृंदावन दिवाली के रंग में रंग गया था। हर ओर रोशनी की तैयारियां चल रही थीं, केवल श्यामदास हकीम का औषधालय सूना पड़ा था। तभी औषधालय की ओर उनके एक संबंधी आए। वह बोले, ‘अरे, आज दिवाली है। तुमने लक्ष्मीपूजन की यहां कोई भी तैयारी नहीं की। औषधालय में लक्ष्मी पूजन अवश्य होना चाहिए ताकि तुम्हारा काम अच्छी तरह चलता रहे।’

यह सुनकर श्यामदास हकीम बोले, ‘लक्ष्मीपूजन तो ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ की आकांक्षा से किया जाता है। क्या मैं पूजन के समय यह कामना करूं कि ज्यादा से ज्यादा लोग बीमार होकर यहां आएं? भला यह कैसा पूजन हुआ? मुझे पता है कि लक्ष्मी उस व्यक्ति से खुश होती हैं जो अपने काम को निष्काम भाव से करता है।’ यह सुनकर संबंधी का सिर शर्म से झुक गया। वह इस बात को जानता था कि श्यामदास हकीम गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं और अन्य लोगों से भी केवल दवाई की लागत मात्र लेकर उनकी सेवा करते हैं। संबंधी बोला, ‘सही मायनों में तो आज लक्ष्मी आप पर ही सबसे ज्यादा प्रसन्न होंगी।’

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