प्रेरक प्रसंग : जहां प्रेम वहां शांति

अक्सर देखा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी अपने सच्चे भक्तों से रूठ भी जाती है। ऐसे ही एक दिन एक भक्त से लक्ष्मी जी रूठ गईं। जाते वक्त बोलीं, ‘मैं जा रही हूं और मेरी जगह आफत आ रही है। तैयार हो जाओ। लेकिन मैं तुम्हें अंतिम भेंट जरूर देना चाहती हूं। मांगो जो भी इच्छा हो।’ उस भक्त ने विनती की, ‘हे लक्ष्मी मां, आपकी आज्ञा शिरोधार्य। यदि आफत आए तो आने दो हम उसका भी स्वागत करते हैं। लेकिन मेरे परिवार में आपसी प्रेमभाव बनाए रखें। बस मेरी यही इच्छा है।’

प्रेरक प्रसंग

यह सुनकर लक्ष्मी जी मंद-मंद मुस्कुराईं और भक्त को तथास्तु कहा। कुछ दिन के बाद शाम के वक्त उस घर की छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। सारी तैयारियां करके उसने खिचड़ी में नमक आदि डाला और घर के दूसरे काम करने लगी। अभी वह दूसरे कार्यों में व्यस्त थी कि दूसरे लड़के की बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई। शाम को सबसे पहले वह भक्त आया। पहला निवाला मुंह में लिया। देखा बहुत ज्यादा नमक है। लेकिन वह समझ गया कि आफत आ चुकी है। उसने चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद बड़ा बेटा आया, उसने पहला निवाला मुंह में लिया।

निवाला मुंह में जाते ही उसने पूछा कि पिता जी ने खाना खा लिया। क्या कहा उन्होंने? सभी ने उत्तर दिया, ‘हां खा लिया, कुछ नहीं बोले।’ अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ नहीं बोले तो मैं भी चुपचाप खा लेता हूं। रात को आफत ने हाथ जोड़कर भक्त से कहा, ‘मैं जा रही हूं।’ भक्त ने पूछा, ‘क्यों?’ तब आफत ने कहा, ‘आप सभी घर के सदस्य अधिक नमक वाली खारी खिचड़ी खा गए, लेकिन बिल्कुल भी झगड़ा नहीं हुआ। ऐसे में मेरा यहां रहना बेकार है। मैं रहके भी क्या करूंगी?’ जहां सच्चा प्रेम भाव है, वहां सच्ची श्रद्धा एवं लक्ष्मी का वास है।

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