नकली चीजें बनाकर इतना आगे निकल गया ये देश कि बना डाला ‘नकली सूरज’

चीन के वैज्ञानिकों ने मानों प्रकृति को चैलेंज देने की ही ठान रखी है। पहले चीन ने 2020 तक नकली चांद आसमान में चमकाने का दावा किया था इस बार ऊर्जा के अखंड स्त्रोत को ही चुनौती दे है। चीन के वैज्ञानिकों ने अब नकली सूर्य बनाने में भी सफलता हासिल कर ली है। खास बात तो यह है कि चीन का यह नकली सूर्य असली सूरज से छह गुना ज्यादा गर्म होगा।

नकली सूरज

चीन के वैज्ञानिकों ने स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए कृत्रिम सूरज बनाने की तैयारी के बारे में बताया है। कहा जा रहा है कि यह कृत्रिम सूरज असली सूरज की अपेक्षा लगभग छह गुना ज्यादा गर्म होगा। असली सूरज का कोर 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गरम होता है वहीं चीन का यह नया सूरज 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की गर्मी पैदा कर सकेगा।

माना जा रहा है कि चीन के इस कृत्रिम सूरज में उत्पन्न की गई नाभिकीय ऊर्जा को विशेष तकनीक से पर्यावरण के लिये सुरक्षित ग्रीन ऊर्जा में बदला जा सकेगा, जिससे धरती पर ऊर्जा का बढ़ता संकट तरीकों से दूर किया जा सकेगा। साथ ही वैज्ञानिकों का मानना है कि जरूरत पड़ने पर ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।

नकली सूरज

चीन के इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिकल साइंस के वैज्ञानिकों के मुताबिक ये आर्टिफिशियल सूरज की टेस्टिंग जारी है। इसे द एक्सपेरिमेंटल एडवांस सुपरकंडक्टिंग टोकामाक (ईस्ट) नाम दिया गया है। कृत्रिम सूरज को न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए पैदा किया जाएगा। यह सौर मंडल के मध्य में स्थित किसी तारे की तरह ही ऊर्जा का भंडार उपलब्ध कराएगा। आपको बता दें कि धरती से करीब पंद्रह करोड़ किलोमीटर सूर्य दूर है।

ईस्ट को एक मशीन के जरिए पैदा किया जाता है। इस मशीन का साइज बीच में खोखले गोल बॉक्स (डोनट) की तरह है। इसमें न्यूक्लियर फ्यूजन (परमाणु के विखंडन) के जरिए गर्मी पैदा की जा सकती है। आपको बता दें कि इसे एक दिन के लिए चालू करने का खर्च लगभग ग्यारह लाख रुपए है। फिलहाल इस मशीन को चीन के अन्हुई प्रांत स्थित साइंस द्वीप में रखा गया है।

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आर्टिफिशियल सूरज यानी ईस्ट को बनाने के लिए हाइड्रोजन गैस को 5 करोड़ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गर्म कर, उस तापमान को 102 सेकंड तक स्थिर रखा गया। बता दें कि असली सूरज में हीलियम और हाइड्रोजन जैसी गैसें उच्च तापमान पर और ज्यादा एक्टिव हो जाती हैं। इस तापमान को पाने के लिए कई सालों तक प्रयोग किए गए। कई बार ऐसा भी हुआ कि न्यूक्लियर फ्यूजन चैंबर का कोर इतने तापमान से पिघल गया।

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