दिल्ली लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उलझन में, किस सीट पर उतरेगा कौन…

चुनाव के दिलचस्प खेल में कांग्रेस अजब उलझन में है। उसके हाथ में 52 पत्ते तो हैं, लेकिन अभी तक उसे हर सीट पर तुरुप का इक्का नहीं मिल पाया है। दिल्ली में माथापच्ची इसी बात को लेकर चल रही है कि लोकसभा की पांच सीटों पर वे कौन से तुरुप के इक्के हो सकते हैं, जो बाजी पलट दें।

दिल्ली लोकसभा चुनाव

इन स्थितियों के बीच जो स्थिति उभर रही है। उसमें पार्टी कुछ सीटों पर हैवीवेट तो कुछ सीटों पर सेकेंड लाइन के नेताओं को मौका देने का सैद्घांतिक निर्णय ले चुकी है। पार्टी इस कोशिश में भी है कि उम्मीदवारों के एलान में देरी न हो। हालांकि उत्तराखंड में कांग्रेस से जुड़ा चुनावी इतिहास बताता है कि पार्टी के उम्मीदवारों के चेहरे नामांकन प्रक्रिया शुरु होने के बाद ही साफ हो पाते हैं।

गेंद अब केंद्रीय नेतृत्व के पाले में

माना ये भी जा रहा है कि राहुल गांधी की 16 मार्च को प्रस्तावित चुनावी रैली के बाद ही उम्मीदवारों को लेकर अंतिम निर्णय होगा। हाईकमान राहुल की रैली के जरिये भी उम्मीदवारों की ताकत को परखने की कोशिश करेगा। कांग्रेस ने उम्मीदवार चयन के लिए निचले स्तर का पूरा काम निबटा लिया है। गेंद अब केंद्रीय नेतृत्व के पाले में हैं। सेंट्रल स्क्रीनिंग कमेटी और पार्लियामेंट्री बोर्ड से उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगनी है।

वैसे, सूत्रों के अनुसार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उम्मीदवारों को लेकर हाईकमान से पूरी बात कर ली है। पांचों सीट पर उम्मीदवारों की मिलीजुली तस्वीर सामने आएगी। यानी पार्टी के लोकसभा चुनाव के लिहाज से स्थापित चेहरे भी मैदान में दिखेंगे। सेकेंड लाइन के उन नेताओं को भी बडे़ चुनाव में उतरने का मौका दिया जाएगा, जो अभी तक क्षेत्र विशेष तक सिमटे रहे हैं।

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हरीश रावत हैवीवेट, टम्टा, पाल भी अनुभवी

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में हरीश रावत को सबसे हैवीवेट दावेदार माना जा रहा है। नैनीताल सीट से उनके चुनाव मैदान में उतरने की संभावनाएं दिन-ब-दिन कमजोर पड़ रही हैं, लेकिन हरिद्वार में सबसे प्रमुखता से उन्हीं का नाम सामने आ रहा है। नैनीताल की सीट की बात करें, तो पूर्व सांसद महेंद्र सिंह पाल के पक्ष में सभी प्रमुख नेताओं की सहमति दिख रही है।

पाल लोकसभा चुनाव की राजनीति के पुराने खिलाड़ी रहे हैं। इसी तरह अल्मोड़ा सीट पर प्रदीप टम्टा का नाम सबसे ज्यादा प्रमुखता से चल रहा है। हालांकि इसके साथ ही एक और बात उठ रही है। वो ये है कि टम्टा का तीन साल का कार्यकाल राज्यसभा में अभी बचा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस क्या राज्यसभा में अपनी एक सीट कम करने का जोखिम लेना चाहेगी, यह अहम सवाल है। हाईकमान अगर इस नजरिये से सोचता है तो फिर सेकेंड लाइन के किसी नेता की लॉटरी इस सीट पर खुल सकती है।

सेकेंड लाइन के कई नेताओं के लिए अवसर

कांग्रेस से बड़ी संख्या में प्रमुख नेताओं के भाजपा में चले जाने के बाद सेकेंड लाइन के नेताओं के लिए यह चुनाव स्वर्णिम अवसर लेकर आया है। गढ़वाल और टिहरी सीट पर तो साफ साफ दिख रहा है कि सेकेंड लाइन के नेता ही भाजपा की चुनौती का सामना करेंगे। टिहरी सीट पर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का नाम तेजी से आगे बढ़ा है। प्रीतम भले ही पांच बार के विधायक और दो बार के कैबिनेट मंत्री रह चुके हों, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिहाज से उनका कोई अनुभव नहीं है।

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इसी तरह, टिहरी सीट पर दावेदारी कर रहे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की भी यही स्थिति है। वह प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं, लेकिन लोकसभा का चुनाव कभी नहीं लड़ा है। गढ़वाल सीट को लें तो प्रमुख दावेदार पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र सिंह कई बार के विधायक और दो बार के मंत्री रह चुके हैं। एक बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी, पूर्व संसदीय सचिव गणेश गोदियाल, डिप्टी स्पीकर रह चुके एपी मैखुरी टिकट की दावेदारी तो कर रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ने के मामले में अनुभवी नहीं हैं।

उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में पार्टी इस बात पर सहमत नजर आ रही है कि कुछ सीटों पर बेहद अनुभवी और कुछ में सेकेंड लाइन के नेताओं को मौका दिया जाए। हम इस बात के पक्ष में हैं कि पार्टी के साथ मजबूती से जुडे़ सेकेंड लाइन के नेताओं को मौका दिया जाए। यह सिकुड़ती जा रही पार्टी को विस्तार देने के लिहाज से भी आवश्यक होगा।

 

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