चाणक्य नीति

शांति से बड़ा नहीं कोई तप

चाणक्य नीति

क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।

नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥

मानव जीवन के संसाधनों पर बात करते हुए चाणक्य कहते हैं कि शांति से बड़ा कोई तप नहीं है। आचार्य के अनुसार, व्यक्ति को अपने अंदर शांति कायम रखनी चाहिए। शांति से बढ़कर तपस्या का कोई स्वरूप नहीं होता है। अर्थात् मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर शांति पाना सबसे जरूरी है।

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