गुरु गोबिंद सिंह की 351वीं जयन्ती आज, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें

गुरु गोबिंद सिंहनई दिल्ली। आज 22 दिसंबर 2016 को गुरु गोबिंद सिंह जी की 351वीं जयन्ती है। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ी कुछ खास बातें…

गोबिंद सिंह अपने पिता गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के एक मात्र पुत्र थे। उनका जन्म 22 दिसम्बर, 1666, को पटना साहिब, बिहार, भारत में हुआ था। उनके जन्म के समय उनके पिता बंगाल और असम में धर्म उपदेश देने के लिए गए हुए थे। उनका जन्म नाम गोबिंद राय सोधी रखा गया था। उनके जन्म के बाद वे पटना में वे चार वर्ष तक रहे और उनके जन्म स्थान घर का नाम ‘तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब’ के नाम से जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी कई अन्‍य नाम भी थे। जिनमें से सर्बांस दानी, मर्द अगम्र, दशमेश पिताह, बाजअन वाले प्रमुख थे।

गुरु गोबिंद सिंह जी महान कार्यो में मुख्‍य रूप से खालसा पंथ के स्‍थापना करना था। 21 जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 लड़के हुए जिनके नाम थे- जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह।

4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह।

15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई संतान नहीं थी पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत ही प्रभावशाली रहा।

1670 में उनका परिवार पंजाब वापस लौट आया। उसके बाद मार्च 1672 में वे चक्क ननकी चले गए जो की हिमालय की निचली घाटी में स्थित है। वहां उन्होंने अपनी शिक्षा ली। चक्क ननकी शहर की स्थापना गोबिंद सिंह के पिता तेग बहादुर जी ने की थी, जिसे आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। उस स्थान को 1665 में उन्होंने बिलासपुर (कहलूर) के शासक से खरीदा था।

अपनी मृत्यु से पहले ही तेग बहादुर ने गुरु गोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नाम घोषित कर दिया था। बाद में मार्च 29, 1676 में गोबिंद सिंह 10वें सिख गुरु बन गए। यमुना नदी के किनारे एक शिविर में रह कर गुरु गोबिंद जी ने तलवारबाजी, शिकार, साहित्य इत्यादि की शिक्षा ली। उन्हें संस्कृत, फारसी, मुग़ल, पंजाबी, तथा ब्रज भाषा की गहन जानकारी थी। सन् 1684 में उन्होंने एक महाकाव्य कविता भी लिखी है जिसका नाम ‘वर श्री भगौती जी की’ है। यह काव्य हिन्दू माता भगवती/दुर्गा/चंडी और राक्षसों के बीच संघर्ष को दर्शाता है।

गुरु गोबिंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया सा लेकर आया। उन्होंने सन् 1699 में बैसाखी के दिन खालसा (जो कि सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है) का निर्माण किया।

उनकी मृत्‍यु 42 साल की उम्र में 7 अक्टूबर, 1708 को हजुर साहिब नांदेड़, भारत में हुई थी।

 

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