गुजरात के किसानों के खिलाफ 3 में से 1 मुकदमा लिया वापस , जाने क्या हैं मामला…

कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स आदि बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको इंडिया ने गुजरात के किसानों के खिलाफ दायर एक मुकदमे को सोमवार को वापस ले लिया हैं। जहां इन किसानों पर आलू की उस किस्म की खेती का आरोप है जिसके बारे में पेप्सिको अपना कॉपीराइट होने का दावा करती है।

किसान

बता दें की पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स ने बनासकांठा जिले के दीसा में वरिष्ठ दीवानी एवं वाणिज्यिक अदालत के जज एस बी रहतकर के समक्ष मुकदमा वापस लेने आवेदन दिया हैं। जहां पेप्सिको ने कुछ आलू किसानों पर 1 करोड़ रुपये से ज्यादा के मुआवजे का मुकदमा ठोक दिया था।

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लेकिन जिस आलू की किस्म पर पेप्सिको अपना कॉपीराइट होने का दावा कर रही है. वह आलू साइज में बड़ा होता है और उसमें नमी दूसरे किस्म के आलू के मुकाबले कम होती है।

वहीं जिस वजह से लेज ब्रांड के पोटैटो चिप्स बनाने में इनका इस्तेमाल किया जाता है।देखा जाये तो सोशल मीडिया और राजनीतिक दबाव के बाद पेप्सिको किसानों से समझौते को राजी हो गई थी।

खबरों के मुताबिक पेप्सिको ने अदालत से कहा कि सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद हम इस मुकदमे को वापस लेना चाहते हैं ताकि अपने बीज के संरक्षण के लिए लॉन्ग टर्म का कोई समाधान निकाल सके हैं।

अमेरिका की कंपनी ने एफसी-5 किस्म के आलू के उत्पादन के लिए किसानों फूलचंदभाई कच्छावा और सुरेशभाई कच्छावा के खिलाफ दीसा अदालत में मुकदमा दायर किया था।

कंपनी का दावा है कि इस किस्म के लिए उसके पास पौध किस्म संरक्षण (पीवीपी) का विशेष अधिकार है. पेप्सिको ने दोनों किसानों के खिलाफ पिछले महीने मामला दायर किया था,  कुल मिलाकर कंपनी ने इस मामले में 11 किसानों को विभिन्न अदालतों में घसीटा है।

दरअसल पेप्सिको का दावा है कि साल 2016 में ही उसे भारत में इस आलू के उत्पादन का खास अधिकार मिला हुआ है। जहां दूसरी तरफ, एक्ट‍िविस्ट का कहना है कि किसानों को किसी भी संरक्ष‍ित किस्म के बीज को बोने, उगाने और बेचने का पूरा अधिकार है। प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज ऐंड फार्मर्स राइट्स (PPVFR) में किसानों को यह अधिकार मिला हुआ है.

लेकिन किसानों ने मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा कि ये बीजे उन्हें एक किसान से दूसरे किसान से होते हुए मिला था। जहां उन्हें पता नहीं था कि इस तरह के आलू को एफसी-5 आलू का किस्म कहा जाता है। लेकिन इसके बाद किसानों ने पिछली बार इस सेटलमेंट को लेकर कोर्ट से समय मांगा था।

 

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