उपचुनाव में वर्चुअल प्रचार पर उच्चतम न्यायालय का फैसला, मप्र हाईकोर्ट के फैसले पर लगायी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राजनीतिक दलों से कहा गया था कि कोविड-19 के मद्देनजर व तीन नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्यक्ष रैलियां करने के बजाय वर्चुअल प्रचार करे.

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत निर्वाचन आयोग से कहा कि कोविड-19 के दिशा-निर्देशों और कानून को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक रैलियों के संबंध में उचित निर्णय लिया जाए। शीर्ष अदालत में आयोग तथा मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की याचिकाओं की सुनवाई हो रही थी जिनमें उच्च न्यायालय के 20 अक्तूबर के आदेश को चुनौती दी गई थी.

शीर्ष अदालत ने तोमर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि वह भारत निर्वाचन आयोग को बताएं कि उच्च न्यायालय के आदेश के चलते चुनाव प्रचार का कितना वक्त बर्बाद हुआ। चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय के आदेश की पृष्ठभूमि में कहा कि संविधान के तहत चुनावों के आयोजन और प्रबंधन की देखरेख का जिम्मा उसका है और संविधान के अनुच्छेद 329 के तहत चुनावी प्रक्रिया के मध्य में न्यायिक दखल पर रोक है।

याचिका में कहा गया कि चुनाव आयोग ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 25 सितंबर को चुनावी रैली या सभाओं के बारे में कोविड-19 संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें कहा गया कि उनके दिशा-निर्देशों तथा राज्य सरकार की मानक संचालन प्रक्रियाओं के मुताबिक सुरक्षा उपायों के साथ राजनीतिक सभाओं में 100 से अधिक लोगों के एकत्रित होने की अनुमति दी जा सकती है।

उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए चुनाव आयोग ने बीते गुरुवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। चुनाव आयोग ने तर्क दिया था कि उच्च न्यायालय का 20 अक्तूबर का आदेश शीर्ष अदालत द्वारा लगातार दिए गए आदेशों की अवहेलना करता है। आयोग ने कहा सर्वोच्च अदालत अपने आदेशों में यह कहता रहा है कि चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया के संचालन और पर्यवेक्षण के लिए एकमात्र प्राधिकरण है और बहु-स्तरीय चुनाव प्रक्रिया में अदालतों को हस्तक्षेप करने से रोकता है।

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