इस सीट पर प्रत्याशी किसी पार्टी का हो, विनर एक ही जाति का होता है

पटना। कोसी नदी की धारा की तरह मधेपुरा संसदीय सीट की चुनावी राजनीति पिछले तीस साल से एक ही धारा पर चल रही है क्योंकि यहां पार्टी भले ही कोई हो विजयी प्रत्याशी एक ही जाति को होता है। इस बार भी इस सीट पर जिन तीन प्रमुख उम्मीदवारों के बीच मुकाबला माना जा रहा है, वे भी एक ही जाति के हैं।

मधेपुरा में इस बार राजद के चुनाव चिन्ह पर दिग्गज नेता शरद यादव मैदान में हैं जिन्हें जाप पार्टी के नेता एवं वर्तमान सांसद पप्पू यादव की गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर नीतीश सरकार में मंत्री एवं जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव की मजबूत उपस्थिति भी है।

बिहार की राजनीति में यह हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद का गढ़ रही इस सीट पर बाहुबली पप्पू यादव और शरद यादव के बीच सियासी जंग में भी मतदाताओं की दिलचस्पी है।

मधेपुरा जिला ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण दिलवाने की सिफारिश करने वाले मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बी. पी. मंडल का पैतृक जिला है। 1967 में मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बी पी मंडल सांसद बने।

मधेपुरा सीट पर, 1989 में जनता दल की लहर चलने और फिर उसका विघटन होने के बाद से कभी राजद तो कभी जदयू का कब्जा रहा है। 2014 के लोस चुनाव में राजद के प्रत्याशी राजेश रंजन ऊर्फ पप्पू यादव जदयू के प्रत्याशी शरद यादव को हराकर सांसद बने थे।

इस बार पप्पू यादव अपनी जन अधिकारी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि शरद यादव जनता दल (यू) से अलग होकर बनायी गयी लोकतांत्रिक जनता दल से उम्मीदवार हैं। हालांकि शरद राजद के चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे हैं। शरद और पप्पू यादव दोनों की नजदीकी कांग्रेस से है।

शरद यादव ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘आज देश विकट हालत में है। केंद्र की सरकार ने कहा था कि अच्छे दिन लाएंगे, गंगा साफ कराएंगे, रोजगार दिलाएंगे, लोगों के खाते में 15-15 लाख रुपये दिलाएंगे, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करेंगे लेकिन इनमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया।’’

उन्होंने दावा किया कि इस बार कोसी की जनता इनके झांसे में नहीं आने वाली है। मधेपुरा के वर्तमान सांसद पप्पू यादव ने कहा, ‘‘ मैं नेता नहीं बेटा हूं। सांसद नहीं सेवक हूं।’’ उन्होंने दावा किया कि वह इस संसदीय क्षेत्र के ‘‘गांव-मुहल्ले, घर-घर से वाकिफ’’हैं। जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव के लिये खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जोर लगा रहे हैं और पिछले कुछ समय में कई बार मधेपुरा का दौरा कर चुके हैं।

तमाम राजनीतिक दावों के बावजूद एक वास्तविकता यह भी है कि मधेपुरा का औद्योगिक विकास नहीं हो सका। रेल इंजन कारखाना में काम शुरू होना एक बड़ी उपलब्धि जरूर मानी जा सकती है, लेकिन उससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन नहीं हो पाया है। सेवानिवृत प्रो. के पी यादव कहते हैं कि 2008 में कुसहा बांध के टूटने से जो तबाही मची थी, उसके बाद नेताओं ने खूब वादे किए थे लेकिन वादे पूरे नहीं हुए। हजारों एकड़ जमीन बालू भरने से बंजर हो गई। किसान और मजदूर बेहाल हैं, लेकिन नेताओं को बस वोट चाहिए।

1967 के चुनाव में मधेपुरा सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने चुनाव जीता। 1968 के उपचुनाव में भी जीत उन्हीं के हाथ लगी। 1971 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव ने चुनाव जीता। 1977 के चुनाव में फिर भारतीय लोक दल के टिकट पर बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने चुनाव जीता। 1980 के चुनाव में फिर इस सीट को चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव ने छीन लिया । 1984 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के चौधरी महावीर प्रसाद यादव विजयी रहे। 1989 में जनता दल के चौधरी रमेंद्र कुमार यादव रवि ने जीत दर्ज की। जे पी आंदोलन से राजनीति में आने वाले शरद यादव ने मधेपुरा को अपनी सियासी कर्मभूमि के रूप में चुना और 1991 और 1996 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

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1998 में राजद प्रमुख लालू यादव ने यहां से चुनाव जीता । 1999 में फिर शरद यादव जदयू के टिकट पर यहां से चुनाव जीते। 2004 में फिर लालू प्रसाद यादव ने इस सीट से जीत दर्ज की। लालू ने इस चुनाव में छपरा और मधेपुरा दो सीटों से लोकसभा का चुनाव जीता हालांकि, मधेपुरा से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इसके बाद हुए उपचुनाव राजद के टिकट पर पप्पू यादव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2009 में इस सीट पर शरद यादव जीते थे। मधेपुरा सीट पर 23 अप्रैल को मतदान होगा। इस सीट पर 18,84,216 मतदाता हैं जिनमें 9,74,722 पुरूष और 9,07, 592 महिला मतदाता हैं ।

भाषा

 

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