अमेरिका में मरने वालों का आंकड़ा पंहुचा एक लाख के पार, आखिर कहां चूक गया सुपरपावर

अमेरिका में कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा एक लाख से भी ज्यादा हो चुका है जबकि यहां संक्रमितों की संख्या 17 लाख के करीब पहुंच चुकी है. अमेरिका के ये आंकड़े पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिला दिया है लेकिन सबसे ज्यादा हालत अमेरिका की खराब है. हर कोई इस बात से हैरान है कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सुपरपावर अमेरिका की आखिर ये हालत कैसे हो गई.

हर तरह के संसाधन और बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं रखने वाले अमेरिका आखिर कोरोना वायरस के सामने इतना बेबस क्यों हो गया है. पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा है कि क्या इस वायरस की गंभीरता को समझने में अमेरिका से कहीं चूक हो गई या फिर ये जानबूझ कर की गई लापरवाही का नतीजा है, जिसका अंजाम से इस समय अमेरिका के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

अमेरिका ने शुरूआत में कोरोना वायरस के मामलों को गंभीरता से नहीं लिया. राष्ट्रपति ट्रंप लगातार कहते रहे कि कोरोना वायरस का अमेरिका के लोगों पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है. जहां कई देशों ने कोरोना वायरस के कुछ मामले आने के बाद ही सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए थे, वहीं ट्रंप ने अपने नागरिकों पर कोई सख्त पाबंदी नहीं लगाई थी.

अमेरिका में पहला मामला जनवरी में आया था इसके बावजूद यहां टेंस्टिंग की रफ्तार बहुत धीमी थी. दो महीनों में तेजी से मामले बढ़ने के बाद यहां कोरोना की टेस्टिंग ने रफ्तार पकड़ी. कुछ दिनों पहले ट्रंप ने भी ट्वीट कर कहा था कि अमेरिका इकलौता देश है, जिसने 1.5 करोड़ से अधिक टेस्ट करवाए हैं. वहीं न्यूयॉर्क के नेताओं ने कोरोना वायरस फैलने के लिए ट्रंप और टेस्टिंग सिस्टम की असफलता को जिम्मेदार ठहराया है.

सुपरपावर अमेरिका के इमरजेंसी मेडिकल किट भी कोरोना वायरस पर बेअसर हो गए. यहां तक कि मेडिकल सप्लाई, मास्क और वेंटिलेटर की कमी के खिलाफ यहां डॉक्टरों ने कई बार प्रदर्शन भी किया. यहां सीडीसी के डायग्नोस्टिक किट में भी कई तरह की खामियां पाई गईं थीं जिसका असर टेस्टिंग पर पड़ा और कोरोना को फैलने का और मौका मिल गया.

बाकी देशों की तुलना में अमेरिका में सोशल डिस्टेंसिंग देर से शुरू हुई. कोलंबिया विश्वविद्यालय की एक स्टडी के अनुसार अमेरिका ने दो सप्ताह पहले ही सोशल डिस्टेंसिंग शुरू की है. अगर ये निर्णय थोड़ा पहले ले लिया जाता तो कम से कम 36,000 लोगों की जान बच सकती थी.

जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए मास्क पहनने का महत्व समझ चुकी है वहीं अमेरिका में कई लोग अभी भी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि मास्क पहनना जरूरी है या नहीं. यहां लोग व्यक्तिगत आजादी के नाम पर सार्वजिनक स्थानों पर मास्क लगाकर कर नहीं जा रहे हैं, जिससे कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. यहां तक कि राष्ट्रपति ट्रंप खुद भी कई बार सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनने से इंकार कर चुके हैं.

अमेरिका में लॉकडाउन लगाने का फैसला बहुत देर से किया, तब तक कोरोना वहां के ज्यादातर क्षेत्रों में फैल चुका था. हालांकि ये लॉकडाउन भी बहुत सख्त तरीक से नहीं लगाया गया था और इसमें छूट की इजाजत भी बहुत जल्द दे दी गई. अमेरिका के कई राज्यों में सिनेमा घर, बार, रेस्टोरेंट और सैलून उस समय ही खुलने शुरू हो गए थे जब कोरोना वहां फैलने की चरण में था. वहीं, ट्रंप अब अमेरिका को पूरी तरह से खोलने पर जोर दे रहे हैं.

अमेरिका में उड़ानों पर प्रतिबंध का भी फैसला बहुत देर से लिया गया. जनवरी में पहला मामला सामने आने के बाद मार्च महीने में यहां ट्रैवल बैन हुआ. ब्राजील में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए हाल ही में वहां से आने-जाने वाले यात्रियों पर रोक लगाई गई है.

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