अतृप्त आत्माओं की वजह से महिलाओं के साथ हमेशा होता है ये अन्याय, जानें क्या है वजह…

मौत,जिंदगी का सबसे बड़ा सच है। दुनिया के इस सच से न तो कोई बच पाया है और न ही आगे ऐसा संभव है। इंसान की मृत्यु के बाद धर्म के अनुसार उसका क्रियाकर्म किया जाता है ताकि उसकी आत्मा को शान्ति मिल सके।

अपनी जिंदगी में आपने कभी न कभी इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि शवयात्रा या अंतिम संस्कार में महिलाएं नहीं जाती हैं।

अतृप्त आत्माओं

जहां आज के जमाने में औरतें हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। हर कठिन से कठिन काम को सुगमता से कर रही हैं। देश के विकास में अपना समान योगदान दे रही हैं तो अंतिम संस्कार जैसे कार्य में क्यों उन्हें जाने से मना किया जाता है? आखिर इसके पीछे की वजह क्या हो सकती है?

आइए आज हम आपको बताते हैं कि क्यों महिलाएं पुरूषों संग अंतिम संस्कार में नहीं जा सकती है?

दरअसल हिंदू धर्म में रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार करने से पहले परिवार के सदस्यों को मुंडन करवाना पड़ता है। महिलाओं के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। इसीलिए उन्हें श्मशान में ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है।

जैसा कि हम जानते हैं कि दुख की घड़ी या गंभीर परिस्थितियों में महिलाए अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाती है और रोने लगती है। श्मशान घाट पर रोने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शान्ति नहीं मिल पाती है। शायद यही वजह है कि औरतों को श्मशान में लेकर नहीं जाया जाता है।

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अंतिम संस्कार कर घर लौटने के बाद कई सारी क्रियाएं करनी पड़ती है। अगर घर में महिलाएं न हो तो इन्हें समुचित ढंग से नहीं किया जा सकता है जैसे कि संस्कार कर लौटे व्यक्ति के पैर धोना, उनके नहाने का प्रबंध करना, द्वार पर खड़े व्यक्ति के शरीर पर गंगाजल का छिड़काव इत्यादि।

ऐसा कहा जाता है कि श्मशान में अतृप्त मृत आत्माएं घूमती हैं। ये आत्माएं जीवित प्राणियों के शरीर पर कब्जा करने का अवसर ढूंढती रहती है।

छोटे बच्चे तथा रजस्वला स्त्रियों को ये आसानी से अपना शिकार बना लेती हैं।

ये भी एक कारण हो सकता है कि महिलाओं और बच्चों को श्मशान में लेकर नहीं जाया जाता है।

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