जानिए लोहड़ी पर अग्नि जलाने का महत्व और इसके पीछे की कहानी
लोहड़ी पर शाम के समय लकड़ियां इकट्ठा कर के घर के आसपास चौराहे या खुली जगह पर अलाव जलाया जाता है। फिर उसके इर्दगिर्द नृत्य कर के नए फसल की खुशियां मनाते हैं।
लोहड़ी एक तरह से प्रकृति की उपासना और आभार प्रकट करने का पर्व है। वहीं ऐसा करने के पीछे एक कारण ये भी है कि पुराने समय में दुल्ला भट्टी नामक के लुटेरे ने लड़कियों को अमीर व्यापारियों से छुड़वाया था और उनकी शादी करवाई थी। इसलिए लोहड़ी पर अग्नि के आसपास घूमकर नृत्य कर के खुशियां मनाई जाती हैं।
मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से सूर्य और अग्नि देव को समर्पित है।
लोहड़ी की पवित्र अग्नि में नवीन फसलों को समर्पित करने का भी विधान है।
इसके अलावा इस दिन लोहड़ी की अग्नि में तिल, रेवड़ियां, मूंगफली, गुड़ और गजक आदि भी समर्पित किया जाता है।
ऐसा करने से यह माना जाता है कि देवताओं तक भी फसल का कुछ अंश पहुंचता है। साथ ही मान्यता ऐसी भी है कि अग्नि देव और सूर्य को फसल समर्पित करने से उनके प्रति श्रद्धापूर्वक आभार प्रकट होता है। ताकि उनकी कृपा से कृषि उन्नत और लहलहाता रहे।
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पौराणिक कथा
इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया।
इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास जवाब लेने गई कि उन्होंने शिव जी को यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं भेजा।
इस बात पर राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। सती बहुत रोई, उनसे अपने पति का अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया।
सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। इसलिए भी लोहड़ी की शाम में लकड़ियां जलाई जाती हैं।
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