
मोदी सरकार आज संसद में सवर्ण आरक्षण को लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश करने जा रही है. कांग्रेस और भाजपा ने अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी किया है. सबसे बड़ी बात है कि इस मुद्दे पर अधिकतर पार्टियों ने सरकार का समर्थन किया है. मायावती ने कहा है कि बसपा सवर्ण आरक्षण पर उनकी पार्टी संविधान संशोधन का समर्थन करेगी.

कांग्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी ने सवर्ण आरक्षण का समर्थन तो किया है लेकिन साथ ही में कहा है कि लोकसभा चुनाव से 100 दिन पहले इस बिल को लाना मोदी सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा कर रहा है. ऐसे भी नेता है जो इसे मोदी सरकार का जुमला बता रहे हैं. तमाम संविधान विशेषज्ञों के हवाले से ये प्रचारित किया जा रहा है कि यह कानूनी रूप से संभव नहीं है.
तमाम सवाल उठाने के बाद भी विपक्ष की पार्टियां मोदी सरकार के इस कदम का विरोध नहीं कर पा रही हैं. दरअसल सवर्ण वोट भले ही संख्या के मामले में कम हों लेकिन चुनाव में पब्लिक परसेप्शन को बदलने की ताकत आज भी रखते हैं और ये बात राजनीतिक पार्टियों को पता है. क्योंकि सभी पार्टियों में आज भी थिंक टैंक से जुड़े लोग सवर्ण समुदाय से ही हैं.
एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद मोदी सरकार को लेकर पूरे देश में सवर्णों ने नाराजगी जाहिर की थी. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सवर्णों ने बीजेपी के खिलाफ और विरोध में नोटा का बटन दबाने का एलान किया था. ऐसा कहा जा रहा है कि सवर्णों की नाराजगी का चुनाव में उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. ऐसी कई सीटें थी जहां भाजपा के उम्मीदवार 3-4 हजार के वोटों के अंतर से चुनाव हार गए. और कहा गया कि सवर्ण अगर बीजेपी के लिए वोट कर देते तो भाजपा मध्यप्रदेश में बहुमत से चंद कदम दूर नहीं रह पाती.
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ऐसे में नरेन्द्र मोदी भी ये समझ गए थे कि अगर उन्होंने अपने कोर वोटर्स को नहीं साधा तो लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है. संघ की तरफ से भी इस बात का फीडबैक दिया जा रहा था कि सवर्ण समुदाय की नाराजगी अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है और अगर इसका तत्काल इलाज नहीं किया गया तो ये नाराजगी एक कुंठा का शक्ल अख्तियार कर लेगी. समाज के बीच में काम रहे नरेन्द्र मोदी के व्यक्तिगत सहयोगियों ने उन्हें इस बात की जानकारी पहुंचाई थी.





