किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी मगर बोलने वाली किताबें तो सिर्फ यहां मिलती हैं जनाब

यहां किताबें बोलतीदेहरादून। किताबें तो आपने बहुत सी पढ़ी होंगी। लेकिन कभी ऐसी जगह गए हैं जहां किताबें बोलती हैं। जी हां देहरादून में एक ऐसा पुस्तकालय है, जहां न तो किताबें दिखाई देती हैं और न ही पाठक। यहां जो नजारा दिखाई देता है वो बेहद ही हैरान करने वाला है। जनाब यहां किताबें बोलती हैं। बता दें इस पुस्तकालय में पाठक नहीं बल्कि सुनने वाले आते हैं।

यहां किताबें बोलती हैं…  

देहरादून में स्थित है एनआईवीएच यानी नेशनल इंस्टिट्युट आफ विजुवली हैंडीकैप्ड, जहां देश भर के दृ्ष्टि बाधित लोग आत्म निर्भर और कामयाब जिंदगी जीने के आशय से पहुंचते हैं।

एनआईवीएच में मौजूद है एक बोलती लाइब्रेरी, यहां किताबें बोलती हैं। यहां हजारों किताबें शब्दों की लिखावट में नहीं बल्कि आवाज की खनक में अपना अहसास कराती हैं।

एनआईवीएच देहरादून में मौजूद बोलती लाइब्रेरी में आज हजारों आडियो किताबें हैं, जो दृष्टि बाधित लोगों के लिये किसी वरदान से कम नहीं हैं।

इन ऑडियो बुक्स से ये लोग भारत के इतिहास, भूगोल, साहित्य से लेकर विज्ञान की तकनीकों को भी समझ लेते हैं।

टाकिंग बुक्स के नाम से जानी जाने वाली ये किताबें इन लोगों के लिये बेस्ट फ्रेंड की तरह हैं। टाकिंग बुक्स के जरिये दृष्टिबाधित लोग शिक्षा के क्षेत्र की सभी मुश्किलों को आसानी से पार कर जाते हैं।

इन टाकिंग बुक्स को ये दृष्टिबाधित लोग प्लैक्स टाक मशीन के जरिए सुनते हैं, जो आईपॉड की तरह एक छोटी सी मशीन है।

इसमें प्ले करने से लेकर रिवर्स और फॉरवर्ड के ऑप्शंस भी होते हैं। हालांकि अब स्मार्टफोन्स के टाल्क बैक फीचर के जरिए भी ये आडियो बुक्स को सुनते हैं।

एनआईवीएच में पढ़ने वाले देवी प्रसाद बताते हैं की इन टाकिंग बुक्स के जरिये हर विषय को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

राष्ट्रीय बोलता पुस्तकालय की स्थापना साल 1990 में की गई थी, हांलाकि शुरुवाती दौर में इसे संचालित और प्रयोग करना बहुत मुश्किल था। क्योंकि दृ्ष्टिबाधित लोगों तक लाइब्रेरी की पहुंच न के बराबर थी। लेकिन टैक्नोलाजी के बदलते समय के साथ इस बोलती लाइब्रेरी का स्वरुप भी बदलता नजर आया है।

एनआईवीएच की निदेशक डॉ। अनुराधा डालमिया के मुताबिक बोलते पुस्तकालय की स्थापना देशभर के दृष्टिबाधित लोगों के बौधिक विकास के लिये की गई थी।

समय के साथ-साथ इस लाइब्रेरी को भी हाइटैक किया जा रहा है। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये टाकिंग बुक्स पहुंच सकें।

देशभर के स्कूलों में भले ही आडियो-वीडियो से लैस स्मार्ट बोर्ड के जरिए बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। लेकिन बोलती लाइब्रेरी के जरिए देश के हजारों दृष्टि बाधित लोग किताबों के शब्दों को अपने दिमाग में उतार रहे हैं।

इन लोगों के लिये इन टाकिंग बुक्स को तैयार करने वाले लोग तारीफ के काबिल हैं, जिनके जरिए ये बोलता पुस्तकालय जिंदा हो पाया है।

वहीं लाइब्रेरी के प्रभारी शैलेन्द्र तिवारी बताते हैं कि शुरुवाती दौर में रिकार्ड्स और कैसेट्स के जरिए आडियो बुक्स तैयार की जाती थी।

अलग-अलग शिफ्ट में नरेटर्स किताबों को शब्दों से अपनी आवाज में उतारकर दृष्टि बाधित लोगों के लिये स्टडी मेटेरियल तैयार करते हैं।

शेलेन्द्र तिवारी बताते हैं की बोलती लाइब्रेरी में 6 रिकॉर्डिंग स्टूडियों हैं। जिनमें अलग-अलग शिफ्ट में बुक्स रिकॉर्ड की जाती हैं। नरेटर्स जिस विषय की बुक्स को रिकॉर्ड करते हैं, उन्हें उस विषय का सम्पूर्ण ज्ञान होना बेहद आवश्यक है।

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