हेल्पलाइन पर आ रहे हैं ऐसे फोन,सर कोच में नहीं, दिल में आग लगी है

helpline_landscape_1459853904एजेन्सी/रेलवे हेल्पलाइन में एक ओर जहां जरूरतमंदों के फोन नहीं मिल पाते वहीं लोग ऐसे वहीं कुछ लोग ऐसी-ऐसी शिकायतों के लिए फोन करते हैं कि आप पढ़कर दंग रह जाएंगे। नजर डालिए कुछ ऐसे ही केसेज पर…

केस 1: ‘…सर मैं सियालदह एक्सप्रेस में सफर कर रहा हूं। यहां आग लगी है, बहुत दिक्कत हो रही है।’ आग…प्लीज आप ट्रेन की लोकेशन बताइए, हम निपटने का इंतजाम करते हैं। आग किस कोच में लगी है। ‘कोच में नहीं सर, आग तो मेरे दिल में लगी है। इसे बुझाने का उपाय बताइए।’ …फोन रखिए ये हेल्पलाइन टाइमपास के लिए नहीं है।    

केस 2: ‘हेलो, भाईसाहब शताब्दी छूट गई क्या।’ …बस अभी छूटी है, बमुश्किल पांच मिनट हुए होंगे। ‘…सर, प्लीज ट्रेन को रुकवा लीजिए, मैं हजरतगंज पहुंच गया हूं।’ …पर ट्रेन निकल चुकी है। ‘…कोई बात नहीं सर, उसे वापस ले लीजिए या चेन पुलिंग करवा दीजिए। मैं बस पांच मिनट में पहुंच जाऊंगा।’ …क्या बकवास है। ‘अरे, मैंने रिजर्वेशन करा रखा है, पीएनआर नोट करिए…।’ फोन कट।

केस 3: ‘…हाय, सर मैं बर्बाद हो गया, लुट गया’। हेलो, रोइए मत, अपनी प्रॉब्लम बताइए। ‘सर, मेरी पत्नी बरेली स्टेशन पर छूट गई है।’ …कोई बात नहीं आप पीएनआर व ट्रेन का नाम बताइए, हम उन्हें आप तक पहुंचाने का इंतजाम करवाते हैं। ‘पागल हैं क्या, ये तो खुशी के आंसू हैं। बड़ी मुश्किल से पिंड छूटा है, वापस न भेज देना…’। पर, सर…हेलो-हेलो।

केस 4: ‘भइया, गजब हो गया। इंजन डिब्बे को लिए बगैर चला गया’। आप गाड़ी का नाम बताइए। ‘पहले आप हमें स्कोर बताइए’। फालतू में टाइमपास न करें, अपनी कम्प्लेंट बताइए। ‘शिकायत कुछ नहीं है भइया, गर्मी बहुत है। सोचा आपसे बतिया लें। अच्छा बताइए सरकार किसकी बनेगी।’ …बकवास बंद करिए। ‘अच्छा ये ही बता दीजिए कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा।’

ये किस्से पढ़ने में भले ही दिलचस्प लगें, लेकिन रेलवे अफसरों के लिए ऐसे फोन कॉल सिरदर्द का सबब बन रहे हैं। दरअसल, ट्रेनों से सफर करने वाले मुसाफिरों की सहूलियत के लिए रेलवे की ओर से हेल्पलाइन नम्बर 138 चलाया जा रहा है, जिस पर यात्री अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। 

लेकिन आए दिन इस नंबर पर ऐसी कॉल आती हैं जिनमें लोग फालतू की बातें कर फोन अटेंड करने वालों का वक्त बर्बाद करते हैं और जरूरतमंद यात्री इस सेवा से वंचित रह जाते हैं।

 

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