अब सिर्फ एक गोली से होगा हेपेटाइटिस सी का खात्मा

हेपेटाइटिस सीनई दिल्ली। हर साल हजारों लोगों की मौत का कारण बन रहे हेपेटाइटिस सी अब जानलेवा नहीं बनेगा। इस बीमारी की असरदार दवाएं उपलब्ध होने के बाद मरीजों के लिए अब इलाज और आसान हो गया है, क्योंकि नई दवाओं की कंबाइंड डोज की गोली भी उपलब्ध हो गई है। इस कंबाइंड डोज की एक गोली से हेपेटाइटिस सी के मरीज का इलाज संभव है। इसका फायदा यह है कि मरीजों को दो-तीन तरह की दवाएं लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा इलाज भी सस्ता हो गया है। एम्स में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारतीय जेनरिक दवाएं भी 95 फीसद तक इलाज में असरदार है।

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देश में करीब 1.20 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। रक्त में संक्रमण के कारण यह बीमारी होती है। इस बीमारी का शुरुआत में पता नहीं चल पाता। इस वजह से लिवर कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं। 20 फीसद लिवर कैंसर का कारण हेपेटाइटिस सी है। पहले इस बीमारी के इलाज के लिए ज्यादा कारगर दवाएं नहीं थी। इसलिए इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर मरीज मौत के मुंह में जाने को मजबूर थे। दो साल पहले इसके इलाज के लिए सोफोसोविर नामक दवाएं आई थी। इसके बाद डाक्लाटसविर व लेडिपासविर दवा आई। एम्स के गैस्ट्रोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शालीमार ने कहा कि पिछले महीने एक और नई दवा वेलपाटसविर आई है। इस तरह हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए चार दवाएं उपलब्ध हो गई है।

इस बीमारी के छह स्ट्रेन होते हैं। शुरुआत में सोफोसोविर, डाक्लाटसविर व लेडिपासविर अलग-अलग आती थीं। उनका कंबाइंड डोज उपलब्ध नहीं था। इसलिए मरीजों को एक से अधिक दवाएं देनी पड़ती थी। अब सोफोसोविर और लेडिपासविर का कंबाइंड डोज उपलब्ध है। इसी तरह सोफोसोविर व वेलपाटसविर की कंबाइंड डोज दवा भी उपलब्ध हो गई है। इसलिए मरीजों को सिर्फ एक गोली तीन महीने तक इस्तेमाल करना होता है।

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इसके अलावा और कोई दवा नहीं चलती। उन्होंने कहा कि हेपेटाइटिस सी अब घातक बीमारी नहीं रही। उसके इलाज की अच्छी दवाएं उपलब्ध हो गई है। एम्स में गरीब मरीजों को दवाएं मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। अन्य मरीजों को भी इस बीमारी के इलाज के लिए अब 11,000-12,000 रुपये से अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

जूनियर डॉक्टर कर सकेंगे हेपेटाइटिस सी का इलाज

यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) के निदेशक डॉ. एसके सरीन ने कहा कि नई दवाओं के आने से हेपेटाइटिस सी का इलाज इतना आसान हो गया है कि जिला अस्पताल में बैठे जूनियर डॉक्टर व नर्स भी कर सकती हैं। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि मरीजों को उनके घर के नजदीक इलाज उपलब्ध हो सके। इसलिए सरकार को प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए।

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