आज पूरा विश्‍व मनायेगा “हिन्‍दी दिवस”, जाने क्‍यों और कैसे हुई इसकी शुरुआत  

हिन्‍दी दिवसहिन्‍दी दिवस:  भारतवासियों की मातृभाषा हिन्दी भाषा को बनाया गया। लेकिन बोलचाल की भाषा में लोगों ने हिन्‍दी को ज्‍यादा तवज्‍जो नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि हिन्‍दी बोलने वाले समय के साथ कम होते गये। जिससे इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत जान पड़ने लगी। इसलिए हिन्‍दी को सम्‍मान दिलाने के लिए हिन्‍दी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया और आज के दिन पूरे भारत में हिन्‍दी भाषा के प्रचार और प्रसार का काम किया जाने लगा।

देखा जाए बोलने के अनुसार अंग्रेज़ी और चीनी भाषा के बाद पूरे दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। लेकिन उसे अच्छी तरह से समझने, पढ़ने और लिखने वालों में यह संख्या बहुत ही कम है।

इसको बढ़ाने के लिए हम हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाते हैं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषाहोगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर साल 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 में इस प्रकार वर्णित है: संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था।

इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। लेकिन जब राजभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। इस कारण हिन्दी में भी अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा।

1991 में इस देश में नव-उदारीकरण की आर्थिक नीतियाँ लागू की गई। इन नीतियों के तेजी से लागू हो पाने के पीछे जितने बड़े कारक थे सोवियत संघ में समाजवाद का पतन एवं इस देश के बड़े पूंजीपति घरानों की बढ़ती इजारादारी शायद उससे कहीं बड़ा, एवं सोवियत संघ के पतन के पीछे का भी, एक कारक था नई प्रौद्योगिकी का अभ्युदय।

यह नई प्रौद्योगिकी एवं इससे उपजते हुये सेवा एवं उद्योग देश की अर्थनीति में कई सारे महत्वपूर्ण बदलाव लाये। सेवा क्षेत्र जिसका देश के सकल घरेलु उत्पाद में अंशदान 25% से भी कम था 50% से अधिक हो गया जबकि कृषि का अंशदान, भारत आज भी कृषि प्रधान देश होते हुये भी 20% से कम रह गया। इसका जबर्दस्त असर पड़ा भाषा की पढ़ाई पर। अंग्रेजी के अलावा किसी दूसरे भाषा की पढ़ाई समय की बर्बादी समझा जाने लगा।

जब हिन्दीभाषी घरों में बच्चे हिन्दी बोलने से कतराने लगे, या अशुद्ध बोलने लगे तब कुछ विवेकी अभिभावकों के समुदाय को थोड़ा थोड़ा एहसास होने लगा कि घर-परिवार में नई पीढ़ियों की जुबान से भाषा के उजड़ने, मातृभाषा उजड़ने लगी है।

हिन्दी दिवस के दौरान कई कार्यक्रम होते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की शिक्षा दी जाती है। जिसमें हिन्दी निबंध लेखन, वाद-विवाद हिन्दी टंकण प्रतियोगिता आदि होता है। हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति लोगों को प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान की शुरुआत की गई है। यह सम्मान प्रतिवर्ष देश के ऐसे व्यक्तित्व को दिया जाएगा जिसने जन-जन में हिन्दी भाषा के प्रयोग एवं उत्थान के लिए विशेष योगदान दिया है। इसके लिए सम्मान स्वरूप एक लाख एक हजार रुपये दिये जाते हैं।

हिन्दी में निबंध लेखन प्रतियोगिता के द्वारा कई जगह पर हिन्दी भाषा के विकास और विस्तार हेतु कई सुझाव भी प्राप्त किए जाते हैं। लेकिन अगले दिन सभी हिन्दी भाषा को भूल जाते हैं। हिन्दी भाषा को कुछ और दिन याद रखें इस कारण राजभाषा सप्ताह का भी आयोजन होता है। जिससे यह कम से कम वर्ष में एक सप्ताह के लिए तो रहती ही है।

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