यहां से कोई नहीं लौटा निराश, नवाब मंसूर ने भी टेका माथा

हनुमानगढ़ी मंदिरअयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है। सरयू नदी यहाँ से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। इस नगर में रामजन्मभूमि-स्थल की बड़ी महिमा है। सरयू के निकट नागेश्वर का मंदिर शिव के बारह ज्योतिलिंगों में गिना जाता है। अयोध्या जैन धर्मावलंबियों का भी तीर्थ-स्थान है। वर्तमान युग के चौबीस तीर्थकरों में से पाँच का जन्म अयोध्या में हुआ था। इनमें प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव भी सम्मिलित है। ऊँचे टीले पर हनुमानगढ़ी मंदिर आकर्षक का केंद्र है।  अयोध्या वह पावन नगरी है, जहां की सरयू नदी में लोग अपने पाप धोने दूर-दूर से आते हैं। यह भगवान राम का राज्य है, जहां हनुमान वास करते हैं। अयोध्‍या आकर भगवान राम के दर्शन के लिए भक्तों को हनुमान के दर्शन कर उनसे आज्ञा लेनी होती है।

हनुमानगढ़ी मंदिर: राम के दर्शन से पहले लें हनुमान की आज्ञा

हनुमानगढ़ी मंदिरअयोध्या नगरी में आज भी भगवान श्रीराम का राज्य चलता है। मान्यता है कि भगवान राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान को रहने के लिए यही स्थान दिया। साथ ही यह अधिकार भी दिया कि जो भी भक्त यहां दर्शन के लिए अयोध्या आएगा, उसे पहले हनुमान का दर्शन-पूजन करना होगा।

रामकाल के इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं। लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, फिर भी एक स्थान हमेशा अपने मूल रूप में ही रहा। यही वह हनुमान टीला है, जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। इस टीले तक पहुंचने के लिए भक्तों को पार करना होता है 76 सीढ़ियों का सफर, जिसके बाद दर्शन होते है पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच प्रतिमा के, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है।

अंजनीपुत्र की महिमा से परिपूर्ण हनुमान चालीसा की चौपाइयां हृदय के साथ-साथ मंदिर की दीवारों पर सुशोभित हैं। कहते हैं कि हनुमानजी के इस दिव्य स्थान का महत्व किसी धर्म विशेष में बंध कर नहीं रहा, बल्कि जिस किसी ने भी यहां जो भी मुराद मांगी, हनुमानलला ने उसे वही दिया। तभी तो अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने इस मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया।

कहते हैं कि एक बार नवाब का पुत्र बहुत बीमार पड़ गया। पुत्र के प्राण बचने के कोई आसार न देखकर नवाब ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। संकटमोचन ने नवाब के पुत्र के प्राणों को वापस लौटा दिया, जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमानगढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया, बल्कि इस ताम्रपत्र पर लिखकर यह घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई टैक्‍स वसूल किया जाएगा।

आज भी हनुमानगढ़ी के नागा साधु कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमत जयन्ती तो मनाते ही हैं, साथ ही कार्तिक शुक्ल एकादशी को सशस्त्र परिक्रमा करते समय उनके हाथ में “निशान” (ध्वज) भी रहता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल एकादशी को भी वे ध्वज के साथ ही शस्त्र-पूजन भी करते हैं। आश्विन शुक्ल को नागा अखाड़ों में शस्त्र-पूजन करके हनुमान गढ़ी से चलकर अयोध्या नगरी में निशान-यात्रा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में भक्तो का ताँता लगता है !

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