भारत ने किया स्वदेशी स्पेस शटल का सफल परीक्षण, ये हैं ख़ास बातें…

स्वदेशी स्पेस शटलनई दिल्‍ली| भारत ने अंतरिक्ष में स्वदेशी स्पेस शटल का सफल परीक्षण कर विज्ञान के क्षेत्र में एक और कामयाबी हासिल कर ली। इस स्पेस शटल को आज सुबह इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया। देश के पहले स्वदेशी स्पेस शटल के स्केल मॉडल का परीक्षण सफल रहा। अब भारत भी अपना स्पेस शटल अंतरिक्ष में भेज पायेगा|

विमान जैसे दिखने वाले और 6.5 मीटर लंबे स्पेस शटल का वजन 1.75 टन है| स्पेस शटल को एक रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया| इस स्पेस शटल की वापसी बंगाल की खाड़ी में एक वर्चुअल रनवे पर लैंड करने से होगी| अब तक अमेरिका ही ऐसी तकनीक को सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर पाया है|

भारत के रॉकेट विकास की दिशा में आरएलवी एक प्रारंभिक कदम है| इसके अंतिम संस्करण के निर्माण में दस से 15 साल लगने की संभावना है। सरकार ने आरएलवी-टीडी परियोजना में 95 करोड़ का निवेश किया है।

स्वदेशी स्पेस शटल की ख़ास बातें

ये भारत का स्पेस शटल यानी कि रियूजेबल लॉन्च व्हेकिल है।

स्केल मॉडल को लेकर एक विशाल रॉकेट ने उड़ान भरी।

बूस्टर रॉकेट, ने आरएलवी यानी स्पेस शटल को आवाज़ से पांच गुनी रफ्तार दी।

स्पेस शटल धरती से करीब 70 किमी की ऊंचाई तक जायेगा|

वापस लौटने से पहले ये किसी प्लेन की तरह हवा में उड़ेगा|

वापसी के दौरान घर्षण की गर्मी से बचाने के लिए इसमें बेहद खास तापरोधी टाइल्स लगी हैं।

अपने डेल्टा डैने की मदद से ये समंदर में पहले से तय रनवे पर प्लेन की तरह उतरेगा|

ये है मकसद

दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले लॉन्च व्हीकल को बनाने के पीछे असल मकसद अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने के खर्चे को कम करना होता है। हालाँकि, अभी तक केवल अमेरिका और रूस के ही स्पेस शटल सफल रहे हैं। अगर भारत इसमें सफल होता है तो अंतरिक्ष विज्ञान में ये भारत की लम्बी छलांग होगी|

इस स्पेस शटल को भेजने के पीछे भारत की मंशा अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं को परखने की भी है| बीते पांच साल से सैकड़ों इंजीनियर इस सपने को हकीकत बनाने में जुटे हुए थे।

 

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