सोशल मीडिया पर आतंकियों के प्रचार का करें विरोध

सोशल मीडियानई दिल्‍ली। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से कहा है कि सोशल मीडिया दुनिया भर में आतंकवाद को फैलाने में बहुत अधिक योगदान कर रहा है। इसलिए सोशल मीडिया पर नजर रखने और ऐसे प्रचार का विरोध करने की जरूरत है। वैश्विक सहयोग के अभाव में आतंक के खिलाफ लड़ाई के लड़खड़ाने पर भारत ने चिंता भी जताई है।

सोशल मीडिया पर करें विरोध 

संयुक्त राष्ट्र मे भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद में बुधवार को कहा कि बहुत सिरों वाले दैत्य की तरह आतंकवाद महाद्वीपों के विकसित और विकासशील देशों में पैर फैला रहा है। सोशल मीडिया, जो लोगों को साथ जोड़ने के लिए बनाया गया है, उस पर नफरत फैलाने के उद्देश्य से प्रचार भी लगातार बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि आतंकी संगठनों के सोशल मीडिया के दुरुपयोग के विनाशकारी प्रभाव पर सावधानीपूर्वक नजर रखने और उसका विरोध करने की जरूरत है, लेकिन इस दौरान यह भी ध्यान में रखना होगा कि अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान बरकरार रहे।

अकबरुद्दीन ने ‘काउंटरिंग द नैरेटिव्स एंड आइडियोलोजीज ऑफ टेररिज्म’ विषय पर बहस के दौरान यह बात कही। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर इस प्रचार का विरोध करने के लिए चरमपंथी विचारधारा के झूठे तर्को को सकारात्मक एवं संतुलित ढंग से खंडन करते हुए शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की जरूरत को और व्यापक ढंग से पेश करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में इसी दौरान शांति और सुरक्षा पर बहस चल रही थी। दोनों बैठकों में अकबरुद्दीन ने आतंक से लड़ने में अंतर्राष्ट्रीय नाकामी का मुद्दा उठाया। दोनों बैठकों में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रभावी नहीं होने और आतंकवाद से निपटने पर ध्यान केंद्रित नहीं करने को लेकर उसकी आलोचना की। अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र में एक आतंकवाद विरोधी शीर्ष निकाय बनाने का सुझाव दिया।

उन्होंने कहा कि यहां संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मुकाबले के लिए भिन्न-भिन्न ढांचे हैं और उन्हें एक उच्चस्तरीय निकाय के अंदर एक साथ जोड़ने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। हमें इस समस्या का समाधान करने की जरूरत है। उन्होंने सुरक्षा परिषद में कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई इस वजह से नहीं सफल हो रही है क्योंकि इसे पूरा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग नहीं मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि वैचारिक ढांचे से आतंकी गुटों का संचालन ही उनकी असली ताकत है। यह बहुत खास एवं तर्क वितर्क की पराकाष्ठा से निर्मित है। इससे निपटने के लिए संयत एवं मुख्यधारा की शिक्षा आवश्यक हो सकती है। उन्होंने कहा कि इसमें अतिवादी एवं उत्प्रेरित विवेचना को चुनौती देने के लिए स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी और धार्मिक नेताओं की जरूरत भी पड़ सकती है। संयुक्त राष्ट्र की सभा में बहस के दौरान उन्होंने दशकों से रुके सुरक्षा परिषद के सुधार एवं विस्तार का मुद्दा भी उठाया।

उन्होंने कहा, जब संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ था तब इसका मुख्य ध्यान तत्कालीन शक्तियों के बीच शांति बनाए रखना था। दुनिया अब आगे बढ़ चुकी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र लगातार बदल रहा है। लेकिन, इसी समय में हम देख रहे हैं कि सुरक्षा परिषद में सुधार को कभी न समाप्त होने वाले मुद्दे के रूप में घुमाया जा रहा है।

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