सुप्रीम कोर्ट सिखा रहा जजों को जीने का तरीका, भयभीत नहीं निडर होकर करना होगा काम…

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि न्यायाधीश ‘भयभीत संत’ नहीं हैं और उन्हें डराया धमकाया नहीं जा सकता और ना ही उनका अपमान किया जा सकता है. उन्हें न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए ‘निडर उपदेशकों’ की तरह होना होगा, जो लोकतंत्र के जीवित रहने के लिये अति आवश्यक है।

शीर्ष अदालत ने 2012 में इलाहाबाद में एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के साथ दुर्व्यवहार और हमले के प्रयास के लिए एक वकील के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना की सजा बरकरार रखते हुए अपने फैसले में यह बात कही।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “न्यायपालिका लोकतंत्र के मुख्य स्तंभों में से एक है और यह समाज के शांतिपूर्ण और व्यवस्थित विकास के लिए आवश्यक है। न्यायाधीश को बेखौफ होकर और भेदभाव रहित तरीके से न्याय देना होता है। उसे किसी भी तरह से डराया या अपमानित नहीं किया जा सकता।”

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पीठ में शामिल न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने कहा, “न्यायाधीश भयभीत संत नहीं हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार रखने के लिए उन्हें ‘निडर उपदेशकों’ की तरह होना चाहिये, जो लोकतंत्र के जीवित रहने के लिये बेहद जरूरी है।”

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