वयोवृद्ध साहित्यकार मुद्राराक्षस का लखनऊ में निधन

साहित्यकार मुद्राराक्षस लखनऊ। वयोवृद्ध साहित्यकार मुद्राराक्षस का आज दाेपहर निधन हो गया। वह लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। बीते महीने सांस लेने में दिक्कत के साथ शुगर लेवल बढ़ने से वे बेहोशी की हालत में चले गए थे। उन्हें केजीएमयू में भर्ती कराया गया था। हाल में तबीयत में सुधार होने पर डॉक्टरों ने घर भेज दिया था। लेकिन सोमवार दोपहर में उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी। उन्हें ट्रामा सेन्टर ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उनका निधन हो गया।

बीते साल मुद्राराक्षस के लिए जय शंकर प्रसाद सभागार में कॉमरेड प्रभात कार स्मृति जन सम्मान समारोह-2015 का आयोजन किया गया था। वह जब घर से सम्मान समारोह के लिए निकले तभी से उनकी सांस फूलने लगी। पहली बार उनकी तबीयत इतनी ज्यादा बिगड़ गई।

जब वह सम्मान समारोह में पहुंचे तो उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि सभागार के अन्दर जा सकें। इसलिए उनके सम्मान की औपचारिकता कार में ही पूरी की गई। उन्हें कॉमरेड प्रभात कार स्मृति सम्मान दिया गया। इसके अन्तर्गत उन्हें 25 हजार रुपए की धनराशि, अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया था।

मुद्राराक्षस की साहित्यिक यात्रा

21 जून 1931 को लखनऊ में जन्मे मुद्राराक्षस ने 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन, 10 से ज्यादा नाटकों का लेखन, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, इतिहास सम्बन्धी तीन पुस्तकें और आलोचना सम्बन्धी पांच पुस्तकें लिखीं। इनमें ‘आला अफसर’, ‘कालातीत’, ‘नारकीय’, ‘दंडविधान’, ‘हस्तक्षेप’, ‘धर्मग्रंथों का पुनर्पाठ’ और ‘आलोचना का समाजशास्त्र’ जैसी रचनाएं विशेष तौर पर उल्लेखनीय हैं। मुद्राराक्षस ‘ज्ञानोदय’ और ‘अनुव्रत’ जैसी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादन से जुड़े रहे। मुद्राराक्षस रचित तमाम पुस्तकों का अंग्रेजी समेत कई दूसरी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। मुद्रा जी 15 सालों से भी ज्यादा समय तक आकाशवाणी में एडिटर (स्क्रिप्ट्स) और ड्रामा प्रोडक्शन ट्रेनिंग के मुख्य इंस्ट्रक्टर रहे। साहित्य, सामाजिक आंदोलनों और सियासत से उनका गहरा नाता था।

सामाजिक सरोकार

वरिष्‍ठ साहित्यकार मुद्राराक्षस समय-समय पर चुनावी मैदान में भी उतरते रहे। साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। अभिव्यक्ति की आज़ादी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, महिला-उत्पीड़न और सरकारी मनमानी आदि मुद्दों पर वे लम्बे समय से लखनऊ की सड़कों पर उतरते रहे और ये सिलसिला उम्र के अस्सी पार जाने पर भी जारी रहा। लखनऊ वाले गर्व करते हैं और करेंगे कि मुद्राराक्षस उनके शहर के थे. साहित्य-संस्कृति की दुनिया में मुद्राराक्षस का नाम बड़े अदब और अहतराम के साथ लिया जाता है।

सम्मान

मुद्राराक्षस को साहित्य नाटक अकादमी, साहित्य भूषण, दलित रत्न और जन सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

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