सारे तीरथ बार-बार और गंगासागर एक बार, आइए जानें क्या है इसकी खास मान्यता?

ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि ‘भारत’ एक रहस्यमय देश है। धरती के 70.8% प्रतिशत भाग पर समुद्र है जिसमें से 14% भाग पर बसा है विराट हिन्द महासागर। भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा है और जिसके 13 राज्यों की सीमा से समुद्र लगा हुआ है। यहां देखने लायक एक ओर जहां बर्फ है तो दूसरी ओर समुद्र, एक ओर जहां जंगल है तो दूसरी ओर रेगिस्तान। कहने का मतलब यहां सब कुछ है। सारे तीर्थ बार बार , गंगा सागर एक बार । जहां गंगा सागर में मिल जाती है वो गंगा सागर है । पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस जगह तक पहुंचना इतना दुर्गम है कि शायद इसीलिये ये कहा गया है कि सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार ।

यहाँ है कपिल मुनि का प्रसिद्ध मंदिर– गंगासागर तीर्थ पर सबसे प्रसिद्ध मंदिर कपिल मुनि के आश्रम पर बना हुआ है। इसी स्थान पर राजा सागर के 60,000 पुत्रों को उद्धार मिला था। यहाँ विशेष तौर  पर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। श्रद्धालु तिल, चावल और तेल का दान देते हैं। कई लोग गौ माता का दान देना शुभ मानते हैं। कोलकाता से 110 किमी0 दूर तक बस का सफर करके डायमंड हार्बर तक पहुंचा जाता है जहां समुद्र के दर्शन होते हैं इसी के साथ कोलकाता का ग्रामीण परिवेश भी यदि आपको देखना हो तो वो भी इस रास्ते में दिख जायेगा जहां हर गांव में और लगभग ज्यादातर घरो में छोटे से पानी के श्रोत में मछलियां पाली जाती है । यानि खाने की सबसे सुलभ और प्रसिद्ध चीज अपने घर में ।

इसके बाद डायमंड हार्बर से फेरी या नाव पकडकर सागर द्धीप पहुंचना होता है जो कि करीब दो लाख की आबादी वाला द्धीप है और वैसे तो साल भर सूना सा ही रहता है पर मकर संक्राति आते ही ये दूधिया रोशनी से जगमगा उठता है इस अवसर पर लगने वाला मेला अदभुत होता है । देश के कोने कोने से आये साधु सन्यासी और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और दुकाने सज जाती हैं । इस सागर तीर्थ का काफी पुराना महत्व है । कुछ लोकोक्तियो के अनुसार यहां का मंदिर ईसवी सन 437 से स्थापित है । 1683 में जेम्स नामक लेखक ने अपनी किताब में यहां के मंदिर का जिक्र किया है । प्राचीन मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि कई बार समुद्र में समा गये । 1973 में वर्तमान मंदिर का निर्माण समुद्र से एक किमी0 दूर कराया गया ।

पहले कच्चा बना ये मंदिर अब पक्का हो गया है । मंदिर में लक्ष्मी , घोडे को पकडे राजा इंद्र और कपिलमुनि की मूर्तियां  है । यहां अब पास में ही साधु संतो और तीर्थ यात्रियेा के लिये धर्मशाला भी बनी हुई है । इस द्धीप के एक छोर पर बंगाल की खाडी है तो दूसरा छोर बांग्लादेश है । पुराने जमाने में इस जगह पर पहुंचने का रास्ता इतना कष्टसाध्य और दुर्गम था कि यहां तक पहुंचने में कई कई दिन लग जाते थे । साथ में नाव से जाने के लिये कोई मछुआरे ही तैयार होते थे और उसके बाद 32 किमी0 लंबे इस द्धीप को पार करने में कई जोखिम थे जैसे जंगली जानवर और कोई यातायात की सुविधा और रूकने की कोई सुविधा ना होना । ना कोई खाने पीने का इंतजाम इसलिये कई यात्री इनमें से किसी भी कारण से अक्सर जान गंवा दिया करते थे शायद इसीलिये भी कहा जाता हो कि सारे तीरथ बार बार और गंगासागर एक बार ।

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