समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग ने शुरू किया काम

समान नागरिक संहिता नई दिल्ली । देश के सभी नागरिकों के लिए कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर विधि आयोग ने विचार करना शुरू कर दिया है। विचार का दायरा क्या होगा इसकी रूपरेखा तैयार होने लगी है। मामले से जुड़े फैसले और दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं।

सुप्रीमकोर्ट ने पिछले वर्ष केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता पर रुख स्पष्ट करने को कहा था। जिसके बाद केंद्र सरकार ने ये मसला विचार के लिए विधि आयोग को भेज दिया है।

आयोग के सूत्र बाताते है कि काम शुरू हो गया है। इस बारे में अदालतों के फैसलों में की गई टिप्पणियां और रिफरेंस एकत्र किये जा रहे हैं। इसके अलावा अन्य संबंधित दस्तावेज भी जुटाए जा रहे हैं। आयोग सबसे पहले रूप रेखा तैयार करेगा। यानि विचार के दायरे में क्या क्या रखा जाए। इसके बाद वेबसाइट के जरिये लोगों की राय भी मंगाई जाएगी। व्यापक विचार विमर्श के बाद आयोग इस पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा इसमें वक्त लग सकता है। सूत्र बताते हैं कि आयोग का मानना है कि समान नागरिक संहिता को किसी धर्म विशेष से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए और न ही आयोग इस लिहाज से इस पर विचार करेगा। ये सभी धर्मो के लिए समान कानून का मामला है और पहले से देश में ऐसे कानून हैं जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं।

समान नागरिक संहिता से सभी के लिए एक जैसा कानून

इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) और अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है। हालांकि आईपीसी और सीआरपीसी दोनों आपराधिक कानून हैं और समान नागरिक संहिता दीवानी कानूनों से जुड़ा मसला है। इसमें शादी, तलाक, संपत्ति बंटवारा जैसे मुद्दे आते हैं जिसमें धर्म से जुड़े पर्सनल ला के संवेदनशील पहलू शामिल हैं। इसलिए आयोग ऐसे दीवानी कानूनों का भी रिफरेंस ढूंढ रहा है जो कि सभी धर्मो पर समान रूप से लागू होते हैं जिसमें यूपी का यूपी एग्रीक्लचर एक्ट 1951 भी है जो सभी धर्मो पर लागू है और इसे आज तक कभी अदालत में चुनौती नहीं दी गई। आयोग इस कानून पर भी विचार कर रहा है।

सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की बात संविधान के अनुच्छेद 44 में कही गयी है। ये नीति निदेशक तत्वों का हिस्सा है। ये आदर्श व्यवस्था तो देते हैं लेकिन इसमें कही गई बातें मानना सरकार के लिए अनिवार्य नहीं है। समान नागरिक संहिता पर बहस तो शुरू से होती रही है लेकिन ये आज तक लागू नहीं हो पाई। शायद यह पहला मौका है जबकि सरकार ने विशेष तौर पर यह मुद्दा विचार के लिए विधि आयोग को सौंपा है।

इससे पहले कभी विधि आयोग ने इस मसले पर अलग से विचार करके रिपोर्ट नहीं दी है। हालांकि विवाह अधिनियमों में सुधार पर समय समय पर आयोग की रिपोर्ट आती रहीं हैं और एक आध रिपोर्ट में रिफरेंस के तौर पर इस पर भी चर्चा हुई है। लेकिन इस बार आयोग विशेष तौर पर इस विषय पर विचार करेगा और अपनी रिपोर्ट देगा।

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