उत्तराखंड में इतने तरह से मनाया जाता है संक्रांति का त्योहार, जानें क्यों

पौड़ी गढ़वाल में मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित होने वाला गेंद मेला (गिंदी कौथिग) का अपना अलग ही महत्व है। गढ़वाल में यह मेला थलनदी, डाडामंडी, देवीखेत, दालमीखेत, मवाकोट व सांगुड़ा बिलखेत आदि कई स्थानों पर होता है, लेकिन थलनदी और डाडामंडी का गेंद मेला सबसे प्रसिद्ध है। इस बार भी गेंद मेलों के आयोजन को लेकर क्षेत्र में उत्साह बना हुआ है।
उत्तराखंड
थलनदी में गिंदी कौथिग के तहत सोमवार को गेंद खेली जाएगी, जबकि डाडामंडी और मवाकोट में 15 जनवरी को गेंद खेली जाएगी। गेंद मेले के तहत कई दिन पूर्व से खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन चल रहा है।
स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है कि डाडामंडी के गिंदी मेले गिंदी खेलते वक्त अगर सात लाश यानी 07 मौत भी हो जाएं तो वो भी माफ़ हैं। और वहीं थलनदी के गिंदी मेले में 5 लाश तक माफ़ मानी जाती हैं। हालाँकि अभी तक ऐसा सुनाई नहीं दिया है कि इस खेल में किसी की मौत हुई हो।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार थलनदी से ही गेंद मेले की शुरुआत हुई थी। थलनदी और डाडामंडी के गेंद मेलों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। गेंद मेला एक मल्ल युद्ध की तरह दो पट्टी के लोगों के बीच बीच खेला जाता है।

इस खेल का न तो कोई नियम है और न ही खिलाड़ियों की संख्या निर्धारित है। मेले का मुख्य आकर्षण एक चमड़े की गेंद होती है, जिसके चारों तरफ एक एक कंगन मजबूती से लगे होते हैं। यह खेल खुले खेतों में खेला जाता है। दोनों पट्टियों के लोग निर्धारित स्थान पर ढोल-दमाऊं और नगाड़े बजाते हुए अपने-अपने क्षेत्र के ध्वज लेकर एकत्र होते हैं। खेल शुरू होने से पूर्व पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है।

जिस पक्ष के लोग गेंद बनवाकर लाए होते हैं वे लोग गेंद को हवा में उछालते हैं और यहीं से शुरू हो जाती है गेंद को लपककर अपने क्षेत्र की सीमा में फेंकने की जद्दोजहद। दोनों पक्षों के लोग गुत्थमगुत्था होकर गेंद की छीना झपटी शुरू कर देते हैं।

सबका एक ही लक्ष्य होता है, गेंद को छीन कर अपनी सीमा में ले जाना। लंबे संघर्ष, छीना-झपटी, धक्का-मुक्की और तनातनी के बाद किसी एक क्षेत्र के खिलाड़ी जब गेंद को अपने क्षेत्र की तरफ फेंक देते हैं तो उस क्षेत्र के खिलाड़ियों को विजय घोषित कर दिया जाता है। जीतने वाली टीम नाचते गाते हुए गेंद को अपने साथ ले जाती है। थलनदी में जहां अजमीर और उदयपुर पट्टियों के बीच गेंद खेली जाती है, वहीं डाडामंडी में लंगूर और भटपुड़ी पट्टियों के बीच गेंद खेली जाती है।
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