असम के लकवा में शौचालय अब आदत बन गई

शौचालयलकवा| असम के सुदूरवर्ती गांव होलो फुकन में एक गृहणी बोर्नाली बोराह अब सुबह जब शौच के लिए बाहर जाना चाहती हैं तो अपनी सास को नहीं उठाती हैं। बोराह और अन्य महिलाएं अब इस बात को लेकर खुश हैं कि गांव के प्रत्येक घर में शौचालय का इस्तेमाल हो रहा है।

शौचालय की समझी अहमियत

शिवसागर जिले में लकवा प्रखंड के अन्य गांवों की तरह बोराह का गांव भी ‘खुले में शौच से मुक्त’ घोषित हो गया है।

उम्र के तीसवें वर्ष में कदम रख चुकीं बोर्नाली ने कहा, “मैं खुश हूं कि हम अब मनुष्य की तरह रहती हैं और जानवरों की तरह शौच के लिए बाहर नहीं जाती हैं।

शौचालय के निर्माण से पहले सभी लोगों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। सभी चीजें निराशाजनक थीं, लेकिन हमारे पास कोई उपाय नहीं था।”

बोर्नाली के घर में बने शौचालय लकवा प्रखंड के 5319 शौचालयों में से एक है, जिसका वित्तपोषण राज्य सरकार और कॉरपोरेट उत्तरदायित्व परियोजनाओं के तहत ओएनजीसी तथा बीपीसीएल(ब्रह्मपुत्र क्रैकर्स एंड पॉलीमर लिमिटेड) जैसी कंपनियों ने किया है। इस पहल का यूनिसेफ ने समर्थन किया था।

लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने 2015 में लकवा प्रखंड का एक आधारभूत अध्ययन किया किया था और पाया था कि पूरे प्रखंड में केवल 35 प्रतिशत घरों में शौचालय थे, जिनमें 51 प्रतिशत इस्तेमाल करने लायक नहीं थे।

लकवा प्रखंड की एक अन्य लाभार्थी महिला बोहागी(68) ने बताया, “लोग अक्सर कहते हैं कि बंद शौचालय में वे असहज महसूस करते हैं, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं।

आखिर सरकार ने शौचालयों का निर्माण न केवल समुचित स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए, बल्कि लोगों की समुचित सुरक्षा के लिए भी किया है।

उन लोगों के लिए, जिन्हें कभी-कभी अंधेरे में शौच के लिए खेतों में जाना पड़ता था।” उन्होंने कहा कि लोगों का मन बदलने के लिए सरकार को काफी प्रयास करने पड़े।

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि उन्होंने जिला और प्रखंड स्तर के अधिकारियों को संवेदनशील बनाना शुरू कर दिया है और दूसरे चरण में ग्रामीण श्रमिकों और स्कूली बच्चों को शामिल किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि यह पहल जिला उपायुक्त के नेतृत्व में शुरू हुई थी और दिसंबर, 2015 में लकवा को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने में सफलता मिली।

अधिकारी ने कहा कि लोग खुले में शौच पर अड़े हुए थे और शुरू में शौचालय निर्माण के प्रयास में कुछ बाधा भी पैदा हुआ। लेकिन अब शौचालय लोगों की आदत में शुमार है।

लकवा में अधिकांश चाय जनजाति समुदाय के लोग हैं। ये लोग यहां गिरमिटिया मजदूर के रूप में लाए गए थे। इनकी जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 17 प्रतिशत है और ये शिक्षा समेत मानव विकास के अन्य मानकों के हिसाब से पिछड़े हुए हैं।

सरकारी पहल के महत्व को समझते हुए लकवा प्रखंड के ग्रमीण जिले के अन्य प्रखंडों के लोगों ने घर में शौचालय के लाभ के बारे में समझना शुरू कर दिया है।

 

 

 

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