अनोखा है शैलेष कुमार का अंदाज, व्हीलचेयर पर बैठकर ही रच दिया इतिहास

शैलेष कुमारनई दिल्ली। जब किसी इंसान की रीढ़ की हड्डी टूट जाए तो उसके लिए सामान्य जीवन की कल्पना भी मुश्किल हो जाती है लेकिन शैलेष कुमार एक ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने इस दुश्वारी पर जीत हासिल करते हुए सफलता के कई आयाम तय किए हैं। दृढ़ मानसिक शक्ति के प्रतीक शैलेष रविवार को राष्ट्रीय राजधानी में होने वाली आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेंस व्हीलचेयर हाफ मैराथन में शिरकत करते नजर आएंगे।

शैलेष को 17 साल की उम्र में जून 2011 में रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। जीत के जश्न में शैलेष के दोस्तों ने उन्हें उठा लिया था लेकिन इसी दौरान वह गिर गए और उन्हें चोट लग गई।

चोटिल होने के बाद उनका इलाज मैरी वघेर्से इंस्टीट्यूट ऑफ रिहेबलीटेशन में चला। शैलेष ने मुस्कुराते हुए मेहनत करना जारी रखा और अपने आप को मजबूत बनाया।

उनके लिए सीखने का सिलसिला सेंटर में ही नहीं रुका। वह वक्त के साथ चोट को लेकर चलते रहे और नई कलाएं सीखते रहे। उन्होंने स्वेच्छा से कुछ घंटे स्कूल में बच्चों के साथ बिताना शुरू किया और उन्हें शिक्षित करने में योगदान देते रहे।

वह अच्छी कविताएं भी लिखते हैं और अपनी बहन का सिलाई के काम में हाथ में बटांते हैं। साथ ही वह अब चंडीगढ़ में एक स्पाइनल रिहेबलीटेशन सेंटर में ट्रेनर के रूप में काम भी कर रहे हैं।

आइए भारत के सबसे तीव्र व्हीलचेयर हाफ मैराथन एथलीट को विश्व स्तरीय मैराथन व्हीलचेयर दिलाएं, जिससे कि वह 2020 और 2024 पैरालम्पिक खेलों को ध्यान में रखते हुए एशियाई और विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकें।

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