अगर कुछ करना चाहते हैं और हौसला नहीं है तो इनसे लें सीख

शिप्रा शांडिल्‍यभारतीय समाज हमेशा से ही पुरुष प्रधान रहा है। यहां महिलाओं को हमेशा से ही दूसरे दर्जे का माना गया है। लेकिन अब हालात काफी बदल चुके हैं। अब महिलाओं को पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं आंका जा रहा। यही बदलाव की बयार बनारस के नरोत्तमपुर गांव में भी बह रही है। कल तक घूंघट में सिमटी रहने वाली गांव की महिलाएं आज कामयाबी और महिला सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रही हैंं। ये महिलाएं मोदी के स्टार्टअप इंडिया के सपनों को साकार करने में जुटी हैं। नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं की पूरी कहानी आपको बताएं, उससे पहले आपको मिलवाते हैं इन महिलाओं के लिए फरिश्ता बनकर आईं फैशन डिजाइनर शिप्रा शांडिल्‍य से।

शिप्रा शांडिल्‍य की अनोखी पहल

फैशन की दुनिया में शिप्रा एक जाना-माना चेहरा हैंं। कई सालों तक दिल्ली और नोएडा जैसे शहरों में अपनी धाक जमाने के बाद अब शिप्रा बनारस की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के साथ ही जागरुक भी कर रही हैं। शिप्रा ने बनारस के दर्जन भर से अधिक गांवों की महिलाओं के हुनर को पहचाना और अब उन्हें तरासने का काम भी वह बखूबी निभा रही हैं।

शिप्रा का एक ही लक्ष्‍य  

शिप्रा शांडिल्‍य ने बनारस में दशकों से बनने वाले जप मालाओं को अब फैशन से जोड़कर बड़ा बिजनेस खड़ा कर लिया है। शिप्रा पिछले तीन सालों से जप मालाओं को बेहतर और आकर्षक रूप देने में लगी हैंं ताकि पहचान खोती इन मालाओं को भारतीय कला और संस्कृति के तौर पर बचाया जा सके। शिप्रा का मकसद तब और भी नेक हो जाता है जब वे अपनी इस मुहिम में वाराणसी के नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं को भी जोड़ती हैं। शिप्रा का मकसद जप मालाओं के व्यापार के साथ महिलाओं को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है।

इसको लेकर शिप्रा शांडिल्‍य ने बताया कि शुरु से ही उनके मन में कुछ अलग करने की चाहत थी। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद वह उन महिलाओं के लिए काम करना चाहती थींं जो आज समाज में हाशिए पर हैंं। इसलिए वह आज गांव की महिलाओं के साथ अपने रोजगार को आगे बढ़ा रही हैं। वर्तमान में उनके साथ इस रोज़गार में 100 से अधिक ग्रामीण महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं।

शिप्रा और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं कीी लगन का ही नतीजा है कि हजारों से शुरू हुआ उनका ये कारोबार आज करोड़ों रुपए में पहुंच गया है। शिप्रा ने छोटी सी पूंजी के साथ जप माला बनाने का काम शुरू किया और आज देखते ही देखते नोएडा, दिल्ली, सहित लखनऊ जैसे शहरों में उनका ये कारोबार फैल चुका है। इन शहरों में शिप्रा ने बकायदा शो रूम भी खोल दिए हैंं। जहां बनारस में बनी हुई जप मालाएं हाथों हाथ बिकती हैंं। यही नहीं विदेशों में डिजाइनर जप माला के लोग मुरीद होते जा रहे हैं।

विदेशों में जप मालाओं की बढ़ती डिमांड को देखते हुए शिप्रा ने malaindia.com के नाम से वेबसाइट भी बनाई है। साथ ही कई ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी से शिप्रा की कंपनी माला इंडिया का करार है। इंटरनेट के माध्यम से शिप्रा काशी की इस पहचान को देश विदेश तक पहुंचा रही हैं। शिप्रा ने बताया उनकी कंपनी में हर प्रकार की जप मालाएं हैं जिनमें काला रुद्राक्ष, चंदन की माला, तुलसी की माला, मुखदार रुद्राक्ष और रत्नों की माला ख़ास है।

शिप्रा बताती है कि आने वाले दिनों में वह अपने कारोबार को और बड़ा रुप देने में लगी हैं ताकि गांव की महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। मोदी के स्टार्टअप कार्यक्रम से उन्‍हें नई ऊर्जा मिली है। काम करने का एक नया नजरिया मिला है। अब वह अपने रोजगार को परंपरा के साथ-साथ आधुनिकता से जोड़ना चाहती हैं।

बनारस की महिलाओं को आत्‍मनिर्भर बनाना लक्ष्‍य

बनारस से सटे गाजीपुर जिले की मूल निवासी शिप्रा के लिए गांव की महिलाओं को जोड़ना आसान नहीं था। बड़े शहरों में काम करने के बावजूद कुछ सालों बाद शिप्रा को गांव की माटी अपनी ओर खिंच लाई। शिप्रा शांडिल्‍य ने बनारस के नरोत्तमपुर गांव को अपनी कर्मभूमि बनाया। आमतौर पर इस गांव की महिलाएं फूलों की खेती करती थींं और खाली समय में मोतियों की माली पिरोती थीं। लेकिन इन महिलाओं का काम आधुनिकता के पैमाने पर खरा उतरने लायक नहीं था और न ही काम के हिसाब से उन्हें मेहनताना मिलता था। शिप्रा ने गांव की महिलाओं के हुनर को उनका हौसला बनाया। उन्हें अच्छी ट्रेनिंग देकर उनका उत्साह बढ़ाया। फिर क्या था महिलाओं ने अपना कौशल दिखाना शुरू किया और नतीजा अाज सबके सामने है।

शिप्रा ने बदल दी गांव की महिलाओं की जिंदगी

रोजगार बढ़ने से नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी बदल गई। गांव की ही रहने वाली शहनाज बेगम बताती हैं कि जब से मैडम का साथ मिला है उन लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट आई है। पहले परिवार का पेट जैसे तैसे भरता था लेकिन अब तो दो पैसे की बचत भी हो जाती है….। मोदी के बनारस से उठी ये आवाज उन लोगों के लिए मिसाल है जो कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन हौसला नहीं रखते। शिप्रा शांडिल्‍य की इस छोटी सी कोशिश ने महिलाओं को न सिर्फ मजबूत बनाया है बल्कि वह अपने प्रधानमंत्री के सपने को भी पूरा कर रही हैं जो उन्होंने स्टार्टअप इंडिया के जरिए देखा है।

 

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