शाकाहारी मगरमच्छ गंगाराम की मौत पर रोया पूरा गांव, निकाली अंतिम यात्रा

छत्तीसगढ़ के मगरमच्छ ‘गंगाराम’ की खबर जानकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। गंगाराम की मौत पर लोग गमजदा है और पूरे गांव में मातम छा गया है। यह गांव है बवामोहतरा जो रायपुर के बेमेतरा जिले में है। गंगाराम की मौत पर पूरा गांव रो रहा है। और यह ‘मगरमच्छ के आंसू’ नहीं हैं। आखिर मगरमच्छ गंगाराम में ऐसी क्या बात थी कि ग्रामीणों का उससे इतना आत्मीय रिश्ता बन गया था।

मंगलवार सुबह अचानक गंगाराम पानी के ऊपर आ गया। जब मछुआरों ने पास जाकर देखा तो गंगाराम की मौत हो चुकी थी। गंगाराम का शव तालाब से बाहर निकाला गया। पूरे गांव में मुनादी करवाई गई। जिसके बाद पूरा गांव उसके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। ग्रामीणों ने सजा-धजाकर ट्रैक्टर पर उसकी अंतिम यात्रा निकाली। गंगाराम को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरा गांव इकट्ठा हो गया। दूर-दूर से लोग गंगाराम के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे।


आमतौर पर तालाब में मगरमच्छ आने की खबर के बाद ही लोग वहां पर जाना छोड़ देते हैं। लेकिन गंगाराम के साथ ऐसा नहीं था। उसने कभी किसी भी ग्रामीण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वहीं तालाब में नहाते समय जब लोग मगरमच्छ से टकरा जाते थे तो वह अपने ही दूर हट जाता था। तालाब में मौजूद मछलियां ही गंगाराम का आहार थी। मगरमच्छ गंगाराम को लोग घर से लाकर दाल चावल भी खिलाते थे और वह बड़े चाव से खाता था।

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गंगाराम ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। जबकि तालाब का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के रूप में सालों से करते आ रहे हैं। गांववाले कहते हैं कि एक बार जरूर एक महिला पर गंगाराम ने हमला किया था लेकिन बाद में छोड़ दिया था। गंगाराम कभी-कभी तलाब के पार आकर बैठ जाता था। बारिश के दिनों में वह गांव की गलियों और खेतों तक पहुंच जाता था। कई बार खुद गांव वालों ने उसे पकड़कर तालाब में डाला है।

दरअसल गंगाराम एक ऐसा मगरमच्छ था जो जिसकी आयु 100 साल से ज्यादा थी। ग्रामीणों ने बताया कि गंगाराम की उम्र करीब 125 साल थी। हालांकि इस बात के कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। इसका नाम गंगाराम कब और कैसे पड़ा इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है। बेमेतरा जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर बावामोहतरा में गंगराम की कहानी मशहूर है। गांववाले बताते हैं कि बावामोहतरा एक धार्मिक-पौराणिक नगरी के रूप में जिले के भीतर अपनी पहचान रखता है।

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