वोटिंग मशीन के खिलाफ चल रहे अभियान का नेतृत्व कर रहे एन. चंद्रबाबू नायडू !

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के खिलाफ चल रहे अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) और 21 अन्य पार्टियां चुनाव आयोग को इसके लिए राजी करने में लगी हैं कि वह 50 प्रतिशत ईवीएम परिणामों का वीवीपीएटी पर्चियों से मिलान करना अनिवार्य करे.

नायडू का कहना है कि ”आवश्यक रूप से 50 प्रतिशत ईवीएम मशीनों से मिले परिणामों का वीवीपीएटी पर्चियों से मिलान किया जाना जांच और संतुलन की दृष्टि से बेहतर है क्योंकि ईवीएम से छेड़छाड़ किया जाना संभव है. हमने वीवीपीएटी पर 9,000 करोड़ रु. खर्च किए हैं. अब चुनाव आयोग को इनसे मिलने वाली सूचना को मतगणना प्रक्रिया का हिस्सा क्यों नहीं बनाना चाहिए?

संभव है इससे प्रक्रिया पूरी होने में कुछ घंटे ज्यादा लग जाएं, लेकिन यह देखते हुए कि हम 40 दिन लंबी चुनाव प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, यह कोई बड़ी कीमत नहीं है.”

उन्होंने कहा कि आयोग ने अभी तक इस पर जवाब नहीं दिया है कि ईवीएम और वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान ठीक न होने पर वह क्या करेगा.

नायडू और दूसरे विपक्षी नेता ‘चुनाव प्रक्रिया की शुचिता बचाए रखने के लिए’ ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर कागज के मतपत्रों का इस्तेमाल फिर शुरू करने के मुद्दे पर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं. नायडू कहते हैं कि तकनीकी रूप से उन्नत देश भी मतपत्रों के माध्यम से मतदान को ज्यादा सुरक्षित वोटिंग प्रक्रिया मानते हुए इस ओर लौट आए हैं.

उनकी चिंता है कि ईवीएम में लगे माइक्रो कंट्रोलरों को नियंत्रित करके ईवीएम के साथ ऐसी छेड़छाड़ की जा सकती है कि मतदाता जिसे वोट देना चाहता है, वोट उसके बजाए किसी और को चला जाए.

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यह जान लेने के बाद कि इसे मनचाहे तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है, अब दुनिया के 191 में से केवल 18 देश ईवीएम का इस्तेमाल कर रहे हैं. नायडू का कहना है कि और बातों के अलावा ईवीएम के सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर के ऑडिट का कोई प्रावधान नहीं है.

टीडीपी मुखिया के दावे के मुताबिक, विश्व के कई प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सुरक्षा शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत की ईवीएम सुरक्षा, सत्यापन और पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं करतीं.

नायडू के तकनीकी सलाहकार हरि कृष्ण प्रसाद सुरक्षा शोधकर्ता हैं और उन्होंने 2010 में दिखाया था कि कैसे ईवीएम को हैक किया जा सकता है. लेकिन उस समय उनके खिलाफ मुंबई में चोरी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

उन्हीं के सुझाव पर चुनाव आयुक्त एस.वाइ. कुरैशी और वी.एस. संपत ने वीवीपीएटी डिजाइन करवाया था और 2011 में इसके पहले परीक्षण के समय निर्वाचन आयोग ने उन्हें नई मशीन देखने के लिए आमंत्रित किया था.

इसके बावजूद जब वे नायडू के दल के सदस्य के रूप में 13 अप्रैल को निर्वाचन सदन पहुंचे थे तो आयोग ने उन्हें ऐसा व्यक्ति करार दिया था जिसके अतीत के कारण भरोसा नहीं किया जा सकता था.

प्रसाद कहते हैं, ”जब उन लोगों ने मुझसे कहा कि मैं ईवीएम चोरी के मामले में अभियुक्त हूं तो मुझे बहुत अपमान महसूस हुआ.” उनका कहना है कि ईवीएम का मौजूदा एम3 संस्करण हैक किया जा सकता है और वीवीपीएटी मशीनें भी सुरक्षित नहीं हैं.

प्रसाद कहते हैं कि ”निर्धारित सात सेकेंड के बजाय तीन सेकेंड तक ही डाले गए वोट का प्रिंट दिखाना साबित करता है कि ईवीएम का मूल कोड असुरक्षित है. जब कोड को बदल दिया जाता है तो मशीन की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है.”

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि पूरे देश में ईवीएम मशीनें या तो ठीक से काम नहीं कर रही हैं या भाजपा के पक्ष में वोट कर रही हैं. उन्होंने इसे 50,000 करोड़ रु. के खर्च से हो रही निर्वाचन प्रक्रिया में आपराधिक लापरवाही भी करार दिया.

कुरैशी चेतावनी देते हैं कि ”राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि ईवीएम और वीवीपीएटी पर लंबी बहसों और निर्वाचन आयोग की सत्यनिष्ठा पर संदेह जताने से दुनिया भर में भारत की नकारात्मक छवि बनेगी. 1982 में ईवीएम की शुरुआत से ही विश्वसनीयता पर सवाल बने हुए हैं. हर राजनीतिक दल ने इस पर संदेह जताए हैं. वे इस मुद्दे को चुनाव हारने पर उठाते हैं, जीतने पर ईवीएम भूल जाते हैं.”

 

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