वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिए प्रमाण, कल्पना नहीं, हकीकत हैं रामायण और श्रीराम

makardhvaj-1458903655एजेन्सी/वॉशिंगटन। रामायण का संदेश भारत की आत्मा है। जिन्हें इस पर अटूट भरोसा है, उन्हें इस ग्रंथ की सत्यता सिद्ध करने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं, परंतु कुछ लोग प्रमाण के अभाव में किसी बात को सत्य नहीं मानते। 

शायद अब वे भी इस महान ग्रंथ की सत्यता स्वीकार कर लें क्योंकि अमरीका के वैज्ञानिकों ने उस स्थान को खोजने का दावा किया है, जिसका संबंध भगवान श्रीराम से है।

वैज्ञानिकों ने उस स्थान का पता लगाया है जिसे रामायण में पाताल लोक कहा गया है। रामायण की कथा के अनुसार इसी स्थान से हनुमानजी भगवान राम व लक्ष्मण को लेकर आए थे। यहां अहिरावण अनुष्ठान कर रहा था और राम-लक्ष्मण की बलि चढ़ाना चाहता था।

यह जगह अमरीकी महाद्वीप के पूर्वोत्तर में होंडुरास के वनों के नीचे पाई गई है। यहां अमरीका के वैज्ञानिकों ने लाइडर टेक्नोलॉजी से जगह का 3डी नक्शा तैयार किया। जमीन के नीचे प्राचीन काल के अस्त्र और प्रतिमाएं निकलने की भी पुष्टि हुई है।

विशेषज्ञों के अनुसार, प्रथम महायुद्ध के बाद अमरीका के एक पायलट ने होंडुरास के वनों में कुछ अवशेषों को देखने का दावा किया था। इस स्थान की पहली जानकारी थियोडोर मोर्ड नामक व्यक्ति ने 1940 में दी थी। अमरीकी मीडिया में उस जगह वानर देवता की पूजा होने की बात का भी जिक्र किया था। बाद में थियोडोर की मृत्यु होने से इस रहस्य का सत्य सामने नहीं आया।

इस घटना के सात दशक बाद अमरीका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी तथा नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग के वैज्ञानिकों ने होंडुरास के वनों की पुन: खोजबीन शुरू की। इससे उन्हें पता चला कि इस स्थान के नीचे किसी समय एक शहर रहा होगा। लेजर तरंगों के आधार पर कहा जाता है कि यहां हाथ में गदा लिए वानर देवता की मूर्ति भी है।

अमरीकी इतिहासकारों का मानना है कि होंडुरास के वनों के बीच मस्कीटिया नामक क्षेत्र कभी लोग वानर मूर्ति की पूजा करते थे। रामायण में यह प्रसंग आता है कि हनुमानजी राम-लक्ष्मण को अहिरावण के चंगुल से मुक्त कर पाताल लोक से लाए थे। वहां मकरध्वज पहरेदार था, जिसे हनुमानजी का पुत्र कहा जाता है।

अहिरावण का वध करने के पश्चात श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल का राजा बना दिया था। होंडुरास के जंगलों में वानर देवता की मूर्ति मिलने से इस संभावना को बल मिलता है कि वह मकरध्वज की मूर्ति है और बाद में यहां के लोग उनकी पूजा करने लगे।

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